wait (last part) in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | प्रतीक्षा (अंतिम भाग)

Featured Books
Categories
Share

प्रतीक्षा (अंतिम भाग)

माया का पति रमन चंडीगढ़ में इंजीनियर था।और शादी के बाद माया अपने ससुराल चली गई
",सही कह रहे हो।लेकिन वह सब अतीत की बात है।अधूरा सपना। रुंंंधध गले से माया बोली।दुख और अवसाद की रेखाएं उसके चेहरे पर उभर आई थी।
"कैसे माया।मैं समझा नही,"राज की समझ मे उसकी बात नही आई थी।
"शादी होने के बाद में जयपुर से चंडीगढ़ चली गयी थी।शादी के बाद भी माया अपने प्रेमी को नही भूली थी।समाज कज नजरो में रमण उसका पति था।लेकिन माया ने उसे दिल से पति स्वीकार नही किया।संजय उसके पास आने का प्रयास करता रहा।लेकिन माया उससे दूरी बनाए रही।
किसी बात को कितना ही छिपाया जाए पर वह छिपती नही।और प्यार तो लाख छिपा लो नही छिपेगा।माया के भी शादी पूर्व के प्रेम प्रसंग का रमन को जब वह एक बार जयपुर गया तो पता चल गया।
माया के रूखे व्यवहार और उसकी बेरुखी को पहले वह बचपना मानकर टाल देता था।प्रेम प्रसंग का पता चलने पर रमन के दिल मे सन्देह का बीज बो दिया।जब उसे माया के गर्भवती होने का पता चला तो वह आग बबूला हो गया।सुहाग सेज पर माया गर्भवती थी ।और जब माया ने सात महीने बाद ही एक लड़की को जन्म दिया तो रमन इतना व्यथित हुआ कि उसने आत्महत्या कर ली।रमन ने अपने को कितनी बड़ी सजा दे डाली।
रमन के न रहने पर ससुराल में माया के लिए क्या रह गया था।वह हमेशा के लिए उस घर को छोड़कर चली आयी थी।
अपना अतीत सुनाकर माया चुप हो गयी।सिर्फ उसकी सांसो की आवाज सुनाई दे रही थी।
कुछ ही देर की बातचीत में वह माया के कितना करीब आ गया था।स्कूल में वह साथ साथ पढ़ते थे लेकिन उसकी माया से कभी भी बात नही हुई थी।वह माया से प्रेम करता था।मूक प्रेम जो एक तरफा था।और स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद माया चली गयी।कुछ दिनों तक माया उसे याद आती रही।पर फिर धीरे धीरे दिन गुजरने के साथ वह उसे भूल गया।पर आज वर्षो बाद उसके दिल की पीड़ा ने उसे झकझोर दिया था।कुछ ही क्षणों में उससे आत्मीयता हो गयी।
"अब तुम कहाँ जा रही हो?"
"जयपुर बैंक में सर्विस कर रही हूँ।"
"यहाँ कैसे आयी थी?"
"आजकल भाई यही है"
माया बोली,"कभी जयपुर आओ तो मिलना।"
इंजन की सिटी की आवाज ने चोंका दिया।उसने माया की तरफ देखा।मंझला रंग,गोरा चिट्टा रंग,सुनी मांग और सुना सपाट चेहरा,बड़ी बड़ी झील सी गहरी आंखों में छाई गहरी उदासी।जिन होठो पर हर समय मुस्कराहट थिरकती रहती थी।वो लब खामोश थे।समय ने माया को कितना बदल दिया था।माया के स्कूल के रूप और आज के रूप में कोई साम्य नजर नही आ रहा था।
ट्रेन धीरे धीरे प्लेटफॉर्म से सरकने लगी।उसने देखा माया की आंखे डबडबा आयी।उसकी आंखें छलछला आयी।
"माया एक बात कहहू?"
"कहना तो पहले भी चाहता था।पर कभी कह ही नही पाया।"
"क्या?'
"मैं अभी तक कुंवारा हूँ,"वह बोला,"अगर तुम मेरी जिंदगी में आ जाओ।"
माया उसकी बात सुनकर कुछ नही बोली।
"मुझे तुम्हारे जवाब का ििइंतजार रहेगा।"
"तुम जयपुर आओ न"
"जवाब तो तुम अभी दे सकती हो।"
"सोचने का मौका भी नही दोगे।"
"नही।"
ट्रेन ने गति पकड़ ली।आगे जाकर ट्रेन रुक गयी।शायद चेन पुल्ल हुई थी।
वह बेंच पर आकर बैठ गया।उसे अपनी ट्रेन के साथ माया के जवाब की भी प्रतीक्षा थी
"राज"
अचानक माया उसके सामने आ खड़ी हुई
"मैने सोच लिया है
उसने माया का हाथ थाम लिया