Koyla bhai na rakh - 3 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | कोयला भई ना राख--भाग(३)

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कोयला भई ना राख--भाग(३)

अम्बिका रात भर सोचती रही और जब सुबह डाक्टर शैलजा उसके पास आई तो वो बोली....
मैनें फैसला कर लिया है डाक्टर!
कैसा फैसला? डाक्टर शैलजा ने पूछा।।
यही कि मैं उन बच्चों के साथ कुछ दिन रहूँगी,अम्बिका बोली।।
मुझे तुमसे ऐसी ही उम्मीद थी,डाक्टर शैलजा बोलीं...
लेकिन मेरी एक शर्त है,अम्बिका बोली।।
कैसी शर्त? डाक्टर शैलजा बोलीं
यही कि मैं भारत छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगीं,अम्बिका बोली।।
ठीक है,मैं उनसे बात करके तुम्हें बताती हूँ,डाक्टर शैलजा बोली।।
जी! आप बात करके मुझे बताइएं कि वें क्या चाहते हैं? अम्बिका बोली।।
और फिर डाक्टर शैँलजा अम्बिका के कमरें से चली गईं,दोबारा दोपहर में वें अम्बिका के कमरें में आईं उन्हें देखकर अम्बिका ने पूछा....
तो क्या कहा उन्होंने?
तभी डाक्टर शैलजा बोलीं...
वें बोलें कि वें तुम्हें लेकर दिल्ली जाना चाहते हैं,वहाँ उनका पुस्तैनी घर है,जिसे उन्होंने अब तक किराएं पर दे रखा ,लेकिन अब उन्होंने उस घर के कुछ हिस्सों को किराएंदारों से खाली करवा लिया है खुद के रहने के लिए,इसलिए वें अब उसमें रहेगें,उन्होंने पूछा कि क्या तुम उनके साथ दिल्ली जाना पसंद करोगी,
और मेरी छुट्टियों का क्या?, अम्बिका ने पूछा।।
मैनें उनसे ये भी कहा था,शैलजा बोली।।
तो उन्होंने क्या कहा?, अम्बिका ने पूछा।।
तब डाक्टर शैलजा बोलीं...
वें बोले कि वें भी तुम्हारे साथ अण्डमान चल सकते थे लेकिन तुम्हारा मज़ा किरकिरा हो जाएगा,शाम सुबह वहीं बच्चों का झंझट,तुम खुश कम तनाव में ज्यादा रहोगी,उन्होंने कहा है कि तूम दिल्ली से वापस आने के बाद अण्डमान चली जाना,तब तुम ठीक तरह से अपनी छुट्टियों का आनन्द उठा पाओगी,
उनका कहना भी सही है ,ठीक है तो मैं उनके साथ दिल्ली जाने को तैयार हूँ और उनसे कहिए कि दिल्ली में रहने का मैं अलग से पैसा लूँगी,अम्बिका बोली।।
ठीक है तो मैं उनसे कह दूँगी,शैलजा बोली।।
और कोई काम हो तो कहिए,अम्बिका ने शैलजा से पूछा।।
अभी इतना ही है और परसों तुम हाँस्पिटल से डिस्चार्ज हो जाओगी तो सीधा तुम्हें उनके साथ दिल्ली निकलना होगा,शैलजा बोली।।
अब ये जिन्दगी मेरी नहीं रही जो सारे फैसले मैं ही लेती फिरूँ,अम्बिका बोली।।
ठीक है तो मैं उनसे तुम्हारे पैसे बढ़ाने को भी कह दूँगी,इतना कहकर डाक्टर शैलजा फिर से चलीं गईं और इधर अम्बिका बिस्तर पर लेटे लेटे सोच रही थी.....
कितनी बड़ी व्यापारी हो गई हूँ मैं!पहले तो अपनी कोख का सौदा करती हूँ फिर उन बच्चों को अपना दूध पिलाने का मोल माँगतीं हूँ,कितना गिर चुकी हूँ मैं...छीः...! मैं क्या थी और क्या हो चुकी हूँ? जब पहली बार ये काम किया था तो मेरी आत्मा ने कितना धिक्कारा था मुझे और मुझसे बार बार यही कह रही कि ये क्या करने जा रही है तू,जब मैं पहली बार कुन्ती की तरह अनब्याही माँ बनी थी तो जी में आता था कि कहाँ छुप जाऊँ? मेरी अन्तरात्मा मुझे भीतर तक कचोट रही थी।।
लेकिन फिर मेरा उस बच्चे के प्रति लगाव बढ़ गया था,मेरी ममता हिलोरें लेती थी उसे देखकर कि ये बीज मेरे भीतर पनपा है,मेरे भीतर ही इसने आकार लिया है,जब वो मेरे भीतर गतियाँ करता था तो मैं उससे बातें किया करती थी और जब वो बाहर आया तो मैनें अपनी सारी ममता उस पर उड़ेलनी चाही तो उसकी असली माँ को मेरा ये रवैया बिल्कुल भी ना भाया और कुछ ही दिनों में उन्होंने मुझे उस बच्चे से दूर करके अलग कर दिया......
मैं रात रात भर उस बच्चे के लिए आँसू बहाती,मैं तरसती थी उसे दूध पिलाने के लिए लेकिन मजबूर थी और फिर अम्मा ने समझाया इतनी ममता मत बढ़ा वो तो पराया था ,क्या हुआ जो तूने उसे नौ महीने अपनी कोख में रखा है......
फिर बाबा एक दिन और सौदा लाएं और अम्मा ने झठ से सौदा पक्का कर लिया,फिर ये सिलसिला यूँ ही चल पड़ा,मेरी आत्मा सिससकती थी लेकिन मैं आँसू नहीं बहा सकती थी,अम्मा ने फिर कभी मेरे बारें में नहीं सोचा और सोचती भी कैसे?अगर मेरा ब्याह हो जाता तो उनकी दुधारू गाय उनके घर से चली जाती जो उन्हें बिना लात मारें उनकी फरमाइश के अनुसार हमेशा दूध देती रही थी....
और अब मेरी इच्छाओं ने मेरे भीतर ही दम तोड़ दिया है,मैं अब केवल भागती फिर रही हूँ अपने अतीत और वर्तमान से,मेरा भविष्य ना जाने क्या होने वाला है? मेरा यौवन धीरे धीरे ढ़ल रहा है,चेहरे की रंगत अब पहले जैसी नहीं रहीं और यही सोचते सोचते अम्बिका की आँखों से दो बूँद आँसू टपक गए.....
दोपहर का खाना नर्स कमरें में लेकर आ चुकी थी,खाने को देखकर अम्बिका बोली....
ले जाओ,आज खाने का मन नहीं है।।
थोड़ा तो खाना ही पड़ेगा,नहीं तो कमजोरी कैसे दूर होगी?नर्स बोली।।
और अम्बिका गैर मन से खाने लगी,शरीर को भी तो मजबूत रखना है,इसी शरीर के दम पर तो वो अपने घरवालों का पेट पाल रही है,यही सोचकर उसने निवाले मुँह में डालने शुरु कर दिए.....
और ऐसे ही अम्बिका के हाँस्पिटल से डिस्चार्ज होने का दिन भी आ गया,वो मुम्बई छोड़कर संदीप और सुनैना के संग दिल्ली चल पड़ी,फ्लाइट अपने निर्धारित समय पर दिल्ली पहुँच गई,एयरपोर्ट से वे सब घर पहुँचे,तब तक रात हो चुकी थी,संदीप ने घर जल्दबाज़ी में किराएदारों से खाली करवाया था इसलिए अभी नौकरों की सुविधा नहीं हो पाई थी.....
संदीप ने सबसे पहले खाना आर्डर किया सबने खाना खाया और सोने चले गए,सुनैना ने अम्बिका को अपने कमरें में ही सुलाया बच्चों के साथ,संदीप अलग बेडरूम में सोया.....
सुबह सुबह अम्बिका जाग गई क्योंकि उसे जल्दी जागने की आदत थी और जाकर बाँलकनी में खड़ी हो गई....उसी घर की सामने वाली बाँलकनी में एक नवयुवक भी अपना चाय का कप लेकर खड़ा था,उसने जैसे ही अम्बिका को देखा तो मुस्कुरा दिया,अम्बिका ने भी उसे स्माइल पास कर दी,फिर उसने इशारों में पूछा....
चाय पिऐगीं।।
अम्बिका ने सिर हिलाकर ना में जवाब दिया।।
फिर उस नवयुवक ने इशारे में पूछा....
लगता है आप यहाँ आज ही आईं हैं,
अम्बिका ने सिर हिलाकर फिर से हाँ में जवाब दिया।।
फिर उसने इशारों में पूछा....
आप शायद गूँगीं हैं....
ये सुनकर अम्बिका खिलखिलाकर हँस पड़ी और बोली....
नहीं! मैं गूँगीं नहीं हूँ।।
और मैं नहीं,वो नवयुवक बोला।।
आप बड़े ही दिलचस्प इन्सान लगते हैं,अम्बिका बोली....
आपने कैसे जाना? उस नवयुवक ने पूछा।।
बस,ऐसे ही,अम्बिका बोली।।
फिर वो नवयुवक बोला.....
अच्छा! चलता हूँ! मुझे आँफिस जाने के लिए तैयार भी होना है और साथ में नाश्ता भी बनाना है।।
ठीक है,अम्बिका बोली।।
और वो नवयुवक बाँलकनी से चला गया....
फिर अम्बिका भी वापस अपने कमरें में आ गई और बच्चों के पास आकर बैठ गई,उन्हें प्यार से सहलाने लगी,तब तक सुनैना भी जाग चुकी थी और उसने जैसे ही अम्बिका को जागा हुआ देखा तो पूछ बैठी....
अरे! आप जाग गई।।
आप मुझे आप मत कहा किजिएगा,हम दोनों लगभग हमउम्र ही होगें,अम्बिका बोली।।
तो फिर तुम भी मेरा नाम लेकर पुकारोगी और मैं भी तुम्हारा नाम ही लूँगी.....सुनैना बोली।।
हम दोनों इसके पहले भी तो नौ महीने एक साथ रह चुके हैं तब हमारा रिश्ता ग्राहक और खरीदार का था लेकिन अब हम दोनों माँएं है और ममता का ना तो कोई मोल होता है और ना उसे बाँटा जा सकता है ये तो केवल सिर्फ एक एहसास है,अम्बिका बोली।।
तुम शायद सच कहती हो,सुनैना बोली।।
और फिर धीरे धीरे अम्बिका का मन सुनैना और उसके परिवार के साथ लगाव हो गया और उस नवयुवक से भी कभी कभी अम्बिका की मुलाकात हो जाया करती,उससे मुलाकातों के बाद उसे पता चला कि उसका नाम रूद्राक्ष है,अब रुद्राक्ष अम्बिका से मिलने कभी कभी उनके घर भी आ जाया करता,सुनैना को रूद्राक्ष की आँखों में अम्बिका के लिए प्यार दिखाई दिया और उसने ये बात अम्बिका से पूछी,लेकिन अम्बिका बोली....
सुनैना!जिस दिन उसे मेरी सच्चाई पता चल जाएगी तो वो उस दिन खुदबखुद मुझसे दूर हो जाएगा।
लेकिन सच्चाई पता लगने के बाद भी वो तुझसे शादी करने को राजी हो गया तो तब तू भी उसके साथ घर बसा लेना,सुनैना बोली।।
सुनैना! ये सब इतना आसान है जैसा कि तुम समझती हो,अम्बिका बोली।।
सब हो सकता है,सच्चा प्यार बड़ी मुश्किल से मिलता है और उसे ठुकराना बेवकूफी होगी,सुनैना बोली।।
सोचूँगी जो तुमने कहा उसके बारें में,अम्बिका बोली।।
और फिर एक दिन रूद्राक्ष ने अम्बिका से पूछ ही लिया उससे शादी के लिए लेकिन अम्बिका बोली...
रूद्राक्ष ! मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूँ।।
लेकिन क्यों? रूद्राक्ष ने पूछा।।
मैं तुम्हें इसका जवाब नहीं दे सकती,अम्बिका बोली।।
तुम्हें इसका जवाब देना ही होगा,रूद्राक्ष बोला।।
तुम मेरी सच्चाई सुन नहीं पाओगे और सच्चाई सुनने के बाद तुम्हें मुझसे नफरत हो जाएगी,अम्बिका बोली।।
पहले बताओ तो कि बात क्या है?रूद्राक्ष ने पूछा।।
तो सुनो! मैं एक सरोगेट मदर हूँ,अम्बिका बोली।।
बस! इतनी सी बात,रूद्राक्ष बोला।।
तुम्हें सच्चाई सुनकर कोई फर्क नहीं पड़ा,अम्बिका बोली।।
नहीं! जो औरत इतनी सारीं निःसंतान माँओं को इतनी बड़ी खुशी दे सकती है भला वो काम गन्दा कैसे हो सकता है?तुम्हें तो खुश होनी चाहिए की तुम दुर्गा माँ की तरह इतने सारे बच्चों की माँ हो,अब बोलो मेरे बच्चे की माँ बनोगी,रूद्राक्ष बोला।।
ये सुनकर अम्बिका की आँखों से आँसुओं की धारा बह चली और रूद्राक्ष ने अपनी बाँहें खोल ली फिर अम्बिका रूद्राक्ष की बाँहों में धीरे से समा गई....
ये खबर जब उसने अपने माँ बाप को बताई तो उन्हें बहुत बुरा लगा क्योंकि अब उनकी कमाई का जरिया बंद होने वाला था और अब अम्बिका मन में सोच रही थी कि वो बिना पैसे लिए केवल अपने बच्चे की माँ बनेगी और जो खुशी आज तक उसके लिए अधूरी थी वो पूरी हो जाएगी.....
आज तक उसकी आत्मा बहुत जली थी,जिस आत्मग्लानि और पाश्चाताप की आग में वो पल पल जलती आई थी,जिसके कारण ना कोयला भई ना राख लेकिन अब उसे अपनी इस जिन्दगी से मुक्ति मिलने वाली थी,जिन पैंसों के लिए उसके माँ बाप ने उसे जिस दलदल में धकेला था उस दलदल से रूद्राक्ष ने उसे हमेशा के लिए दूर कर दिया था,उसे अब अपनी जिन्दगी से नफरत नहीं थी।।
फिर एक दिन अम्बिका ने रूद्राक्ष से कहा कि वो अपने मन का हाल उसे बताकर बोझ उतारना चाहती थी ,वो चाहती थी कि उसकी बात उसके माँ बाप सुनें लेकिन उन्हें कभी सुध ही ना रही उसकी बात सुनने की....
रूद्राक्ष बोला....
आज तुम अपने मन की बात कह ही दो।।
तब अम्बिका ने अपनी कहानी रूद्राक्ष को सुनाई कि पहली बार जब उसने ये काम किया था तो उस पर क्या बीती थी......
अम्बिका ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की...

क्रमशः
सरोज वर्मा.....