Saasu-Bahu.. EK rishta ulja sa - 3 in Hindi Women Focused by निशा शर्मा books and stories PDF | सास-बहू...एक रिश्ता उलझा सा। - 3 - अंतिम भाग

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सास-बहू...एक रिश्ता उलझा सा। - 3 - अंतिम भाग

तुम्हें सासू माँ से ऐसा नहीं कहना चाहिए था ! आखिर क्या जरूरत थी तुम्हें बोलने की ? वो तो मुझे सुना रही थीं और मैं सुन रही थी फिर तुम क्यों बोले ?

"यार रचना तुम भी कमाल करती हो। आज तक जब मैं कभी नहीं बोलता था तो तुम कहती थी कि तुम कभी कुछ बोलते नहीं हो और आज जब मैं कुछ बोला हूँ तो तुम कह रही हो कि बोला क्यों ? हद्द है यार !", दीपक नें चिढ़े हुए स्वर में अपनी पत्नी रचना को जवाब दिया !

"दीपक तुम जाने दो ! तुम नहीं समझोगे !", रचना ने गहरी स्वांस भरते हुए कहा ।

"हाँ भईया ! मैं क्यों समझूँगा और वैसे भी इस घर में दो ही तो समझदार लोग हैं,एक तुम और एक तुम्हारी सासू माँ !!", इतना कहकर दीपक दूसरी ओर करवट लेकर सो गया ।

सुबह-सुबह सबसे पहले दीपक और रचना केतकी जी के पास गए और उनके पैर छूकर उन्हें सॉरी बोला जिसपर वो बिल्कुल चुपचाप बैठी रहीं और फिर जब दीपक वापस जाने के लिए मुड़ा तो उन्होंने उससे बस इतना ही कहा कि वो अभी कानपुर वापस नहीं जा रही हैं !

अगले दो-चार दिनों तक घर में शांति ही रही, ना तो केतकी जी ने ज्यादा कुछ कहा और ना ही रचना ने उन्हें अपनी तरफ से कुछ भी कहने का कोई मौका ही दिया ! इस बीच दीपक और रचना ने एक दिन इंडिया गेट पर पिकनिक मनाने का प्लान भी बनाया जिसमें केतकी जी अपने पोते के साथ खुलकर हंसी और खुश हुईं !

केतकी जी रोज की तरह आज भी खाना खाकर दोपहर में अपने कमरे में जाकर सो गईं ! वो रोज दोपहर में कम से कम दो घंटे तो जरूर ही सोती थी मगर आज ना जाने क्यों उन्हें नींद ही नहीं आई और फिर वो अपने कमरे से बाहर निकलकर टहलने लग गई ! शायद उन्हें गैस की दिक्कत हो रही थी । टहलते-टहलते अचानक ही उन्हें महसूस हुआ कि उनकी बहू रचना बाहर बॉलकनी में बैठकर किसी से बातें कर रही है । ये जानने की उत्सुकता कि वो किससे बात कर रही है, ने उन्हें सीधे बॉलकनी के बाहर ले जाकर खड़ा कर दिया !

जहाँ पहुंचकर उन्हें ये एहसास हुआ कि उनकी बहू किसी से फोन पर बात कर रही है । अब केतकी जी भी वहीं दरवाजे के पीछे छुप कर अपनी बहू की बातें सुनने लग गईं !

"हाँ! सासू माँ हैं अभी। अभी तो वो अपने कमरे में सो रही हैं। यार उस दिन जो कुछ भी हुआ वो मुझे बिल्कुल भी ठीक नहीं लगा। वैसे दीपक ने इतनी बड़ी बात भी तो नहीं कही थी कि सासु माँ ने इतना हंगामा कर दिया", ये कहते-कहते रुआंसी सी हो गई रचना की आवाज और फिर वो थोड़ी देर ठहर कर बोली कि यार कविता एक तू ही है जिससे मैं अपने दिल की सारी बात कह देती हूँ वरना मैं तो कभी अपना दुख-दर्द दीपक तक को भी नहीं बताती हूँ।

और फिर इससे क्या फायदा कि मेरी वजह से वो भी परेशान हो! यार कविता सच बताऊँ तो ना मैं अब थक चुकी हूँ,बहुत थक चुकी हूँ यार!!

"कविता तुझे पता है! मेरी सासू माँ को घर में काम वाली रखना बिल्कुल भी पसंद नहीं है और इसीलिए मैं हर बार जब भी वो यहाँ रहने आती थीं तो कामवाली को छुट्टी देकर खुद ही सारा काम कर लिया करती थी मगर इस बार मैं चाहकर भी उसे सासू माँ के आने पर भी नहीं हटा पाई क्योंकि तुझे तो पता है ना कि मेरी अंगुलियों में वो अर्थराइटिस की वजह से कितना दर्द रहता है तो यार मैं तो अब कितनी भी कोशिश कर लूँ ना फिर भी मैं बर्तन तो नहीं माँज सकती हूँ और ना ही पोंछा या कपड़े ही धो सकती हूँ",इतना कहते-कहते अपनी बेबसी पर रो पड़ी रचना!

"तुझे पता है ना कविता कि मैं वैसे भी ज्यादा काम नहीं कर पाती हूँ! एक तो माइग्रेन,दूसरे अर्थराइटिस की प्रॉब्लम और ऊपर से ट्यूशन भी पढ़ाना रहता है मुझे! दीपक तो ऑफिस के काम में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें तो घर का राशन लाने से लेकर बाहर की अन्य किसी भी जिम्मेदारी से भी कोई सरोकार तक नहीं है। चीकू का भी सारा काम मैं ही देखती हूँ! चाहे फिर वो उसके स्कूल जाना हो,उसे पढ़ाई या किसी प्रोजेक्ट में हेल्प करना हो या फिर उसके बीमार होने पर डॉक्टर की विजिट ही क्यों ना हो मगर यार अब बस", कुछ देर ठहरकर एक गहरी साँस लेने के बाद रचना ने फिर से बोलना शुरू किया... मेरी भी अब उम्र बढ़ रही है कोई कम तो नहीं हो रही है ना! अब मुझे भी चाहिए कि कोई मेरी भी फिक्र करे, मुझे समझे मगर यार हर एक के साथ इतना कुछ करने पर भी आज कोई एक शख्स भी ऐसा नजर नहीं आता जो कि मुझे समझे या मेरी कद्र करें! अब तू ही बता मैं क्या करूँ कविता?

तभी रचना को ना जाने कैसे केतकी जी की आहट महसूस हुई और उसने अपनी सहेली कविता से यह कहकर कि मैं तुझसे बाद में बात करती हूँ, फोन रख दिया! जब रचना ने कमरे में अंदर आकर देखा तो वहां पर कोई नहीं था!

इधर केतकी जी अपने कमरे में जाकर चुपचाप सोने वाली मुद्रा में एक ओर करवट लेकर लेट गईं! जब रचना बाहर सब्जी लेने चली गई तो केतकी जी ने जल्दी से उठ कर अपनी बड़ी बहन को फोन मिलाया और उन्हें एक के बाद एक रचना द्वारा अपनी सहेली से कही गई हर एक बात बताई और कहा कि दीदी आप तो उस दिन रचना का बड़ा पक्ष ले रही थी कि वो दिल की बुरी नहीं है! तो अब आप ही बताओ दीदी,क्या मैं बुरी हूँ दिल की? हाँ दीदी,बोलो न ! अरे क्या उसे इस तरह से अपने घर की बात किसी बाहर वाले को बतानी चाहिए थी क्या? देखो दीदी मेरी कितनी बुराई कर रही थी वो जरा सी लड़की! अरे कहती है कि मेरी भी उम्र हो रही है, मुझे भी सहारा चाहिए! अरे मेरा बेटा सारा दिन दफ्तर में अपनी हाड़ें गलाता है तो किसके लिए? अरे!इसी की सारी सुख सुविधा के लिए ही ना!!

और मैं तो कामवाली के लिए मना इसलिए करती थी कि चार पैसे बचेंगे तो इन्हीं लोगों के तो काम आएंगे ना और फिर गिनती के तीन लोग हैं घर में तो काम ही कितना रहता है!!अरे हमने तो जितना काम कर लिया ना अपने जमाने में, वो तो ये आजकल की लड़कियाँ कभी कल्पना भी नहीं कर सकतीं!

"केतकी! अब जरा तुम शांत हो जाओ पहले और जरा ठंडे दिमाग से मेरी बात सुनो! मैं तुमसे बड़ी हूँ तो इस लिहाज से मेरा अनुभव भी तुमसे ज्यादा है और मैं तुम्हें कोई गलत सलाह तो दूंगी नहीं मेरी बहना", दूसरी तरफ से फोन पर केतकी जी की बड़ी बहन ने कहा! फिर कुछ देर रुककर वो पुनः बोलीं... तुम्हें याद है केतकी! एक बार बहुत पहले तुमने मुझसे पूछा था कि मैं हमेशा इतनी खुश कैसे रहती हूँ? क्या मैं अपने बहू-बेटे,नाती-पोते और पोतियो से पूर्णतःसंतुष्ट हूँ और मैंने तुम्हें हंसकर और बड़ी ही सहजता से उत्तर दिया था कि मैं किसी से कभी कोई उम्मीद ही नहीं लगाती और मैं जब पहले से कोई उम्मीद ही नहीं लगाती मेरी बहन तो फिर उनके टूटने या पूरा न होने पर कैसा कष्ट? हाँ,तुम्हें ये बातें शायद बड़ी-बड़ी बातें जरूर लग सकती हैं मगर बेटा मेरा तो यही सच है और रही बात संतुष्टि की तो सुन मैं मेरी इतनी उम्र बीत जाने पर भी कभी ना तो किसी सत्संग में गई और ना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतर मैंने कुछ किया। पहले तेरे जीजा जी की सेवा करती रही,बच्चों के भविष्य को संवारने में लगी रही और जब से बच्चे बड़े हो गए तो सोचा कि अब कुछ अपने लिए सोचूँगी तो तेरे जीजा जी ही मुझे छोड़कर इस दुनिया से अलविदा कह गए!!

अब मुझसे सब कहते हैं कि अब मेरे पास क्या जिम्मेदारी बची है? अब तो मैं जहां चाहे घूमूँ-फिरूँ मगर मेरी बहन आज मैं तुझे वो बताती हूँ जो कि मैंने आज तक किसी को भी नहीं बताया। तो सुन!! मेरी बहू रोज सुबह-शाम दो टाइम तो ओम- शांति के आश्रम में जाती है फिर उसके अलावा रोज सुबह उसकी दो घंटे की एक योगा क्लास होती है फिर एक घंटे की मॉर्निंग-वॉक और दोपहर में एक ओशो क्लास और हाँ इसके अलावा उसका जो किट्टी का ग्रुप है उसमें व्यस्त रहती है और यदि कभी गलती से भी मैं कुछ कहूँ या समझाऊँ तो क्लेश!!

और मेरा बेटा तो क्लेश से इतना डरता है कि अगर उसकी बीवी दिन को रात कहे तो वो भी रात कहे! तो सुन कि अगर मैं गलती से कभी दो दिन भी बीमार पड़ जाऊँ तो मेरे बच्चों को मतलब कि मेरे बेटे और पोते-पोतियो को दो वक्त का खाना भी टाइम से ना मिले समझी!! और फिर मैं तो ये सोच लेती हूँ कि चलो हमने अपनी जिंदगी नहीं जी तो क्या? हमारे बच्चे ही जी लें और फिर बहू भी तो अपने ही घर की बच्ची होती है ना तो अगर अपने बच्चे में जरा थोड़ी कमियाँ भी हैं तो क्या हम उन्हें त्याग दें या फिर किसी एक गलत सदस्य की वजह से परिवार के बाकी सदस्यों के लिए क्लेश का वातावरण बना दे? मेरी प्यारी छोटी बहन ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं हमारे आसपास जहाँ आजकल के बहु-बेटे अपने माँ-बाप की जरा सी भी फिक्र या परवाह नहीं करते और फिर ये तो तू भी मानती है ना कि तेरी बहू करोड़ों में ना सही पर लाखों में तो एक है ही!

वो जो कुछ भी करती है दिल से करती है ना कि दिखावे मात्र के लिए और फिर तू ये सोच कि वो सिर्फ एक तेरी खुशी के लिए या तेरे सम्मान की खातिर ही तो हर बार तेरे आने पर काम वाली को छुट्टी दिया करती थी वरना तू ये सोच कि यदि वो ऐसा ना भी करती तो तू क्या कर लेती और अगर तेरे टोंकने पर वो तुझे ये जवाब दे देती कि उसका पैसा वो जैसे चाहे वैसे खर्च करें तब !!

अरे! केतकी तू तो सचमुच बड़ी ही किस्मत वाली है,जो तुझे रचना जैसी नेक दिल बहू मिली है। जिसने इतने सालों में कभी भी तुझे पलट कर जवाब तक नहीं दिया। मेरी बहन तू तो बड़ी ही समझदार है और मैंने तो खुद अपनी आँखों से देखा है तेरे जीवन-संघर्ष को! बेटा! ये सास-बहू का रिश्ता तो वैसे भी बड़ा ही उलझा हुआ सा रिश्ता होता है मगर तू इसे अब और बेकार की औपचारिकताओं में फंस कर मत उलझने दे! बेटा, इसे अब तू अपने स्नेह और अपनेपन से इस कदर सुलझा दे कि कभी किसी को संदेह भी ना हो कि इसमें कभी कोई उलझन भी थी। बाकी तू खुद समझदार है! अब तू अपना फैसला खुद ले!! चल अच्छा मेरा खाना बनाने का समय हो गया है। मैं तुझसे बाद में बात करती हूँ, बाय!

"नमस्ते बहन!", कहकर केतकी जी ने फोन रख दिया और अब व़ किचन की तरफ चल दीं चाय बनाने!

रचना बाजार से लौटी तो वो डाइनिंग-टेबल पर रखे हुए पोहे और चाय को देखकर एक अनजाने डर एवं शंका से भर उठी! वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही केतकी जी ने उसके हाथ से सब्जी का थैला पकड़ते हुए कहा कि बेटा आ बैठ! चाय पी ले! देख जरा मेरे हाथ के पोहे कैसे बनते हैं?

"सासू माँ! सॉरी, शायद मुझे देर हो गई लौटने में मगर आप क्यों परेशान हुईं? मैं बस आकर बना देती", रचना इसके आगे कुछ बोल पाती उससे पहले ही केतकी जी नें रचना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि बेटा तू सारा दिन हमारे लिए काम में लगी रहती है तो क्या हम तेरे लिए कुछ भी नहीं कर सकते और फिर अब तेरी भी उम्र बढ़ रही है और मेरी भी,हँसते हुए केतकी जी बोलीं!

अब हम दोनों को एक दूसरे का सहारा बनना है बेटा! इस आत्मीयता भरी बात को सुनकर रचना की आँखें छलछला गईं और वो अनायास ही केतकी जी के गले से लग गई!

अब सास-बहू दोनों की ही आँखें नम थीं! दीपक भी ऑफिस से आ चुका था और चीकू को भी पोहे की खुशबू उसके कमरे से डाइनिंग-टेबल तक खींच लायी थी! पूरा परिवार डाइनिंग-टेबल पर एक साथ बैठकर नाश्ता कर रहा था और माहौल में एक अलग सी शांति और संतुष्टि बिखरी हुई थी !!

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐