Ek Prem Patra in Hindi Letter by महेश रौतेला books and stories PDF | एक प्रेम पत्र

Featured Books
Categories
Share

एक प्रेम पत्र

अनिरुद्ध एक प्रेम पत्र लिख रहा था। रात के ग्यारह बजे थे। उसने आधा पन्ना लिखा था। फिर उसकी आँख लग गयी। दो घंटे बाद नींद खुली तो देखा कि पत्र पूरा लिखा हुआ उसके सामने था।  वह आश्चर्य में डूब गया। एक अदृश्य शक्ति उसका हाथ चला रही थी।
 उसे ख्याल आया कि उसके समय कैसा प्यार होता था,धीरे-धीरे, आहिस्ता-आहिस्ता। इतना धीरे-धीरे कि बुढ़ापे तक एक-दूसरे तक आवाज न पहुंचे।यदि किसी ने कह भी दिया तो दूसरा अनसुना करने के अंदाज में हो जाता था।प्यार अनार के दानों की तरह हृदय में पक कर लाल हो जाता था।
वह सीढ़ियां चढ़ा। सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते उसकी सांस भी फूल रही थी। उसे लग रहा था जिन सीढ़ियों को वह कभी अवरोध नहीं मानता था वे आज हिमालय सी कठिन हो गयी थीं। ऊपर पहुंच कर उसने देखा जिस घर को देखने वह आया है वहां पर खेत दिख रहा है। कुछ सब्जियां उसमें उगी हैं। उसने आह भरी, विस्तृत आकाश को देखा। पचास साल पहले भी वहीं पर खड़ा होकर वह तारों से झिलमिल आकाश को देखा करता था। उसने अपनी डायरी निकाली और उसमें लिखने लगा।
"प्रिय,
 मैं पचास साल बाद तुमसे मिलने आया हूँ। कभी समय ही नहीं मिला। इतना व्यस्त रहा कि यहाँ तक पहुंच नहीं सका। तुम पढ़ने में कमजोर थी और ठीक से सुन भी नहीं पाती थी। मैं जब तुम्हें पढ़ाता था तो असीम आनंद का अनुभव करता था। तुम बाजार से छोटी-बड़ी चीजें मुझसे मँगवाया करती थी। मुझे तुम्हारा काम करना अच्छा लगता था। जब मैं अन्तिम बार तुमसे विदा हुआ था तो तुम बहुत रोयी थी। मैं उदास था पर रोया नहीं था। आज में देखने आया था कि तुम कैसी हो। तुमने जब मुझे फूल दिया था, मैंने उस फूल को तुम्हारे बालों में रोप दिया था। शायद, तुम उस फूल की तरह खिलती, मुस्कराती रही होगी।" वह लिख रहा था तभी वहां पर एक आदमी आया। उसने अनिरुद्ध से पूछा," क्या काम है? आप कौन हो?"  अनिरुद्ध बोला," अदिति रहती थी यहाँ, उससे मिलने आया हूँ।" वह आदमी बोला," उसकी कैंसर से मृत्यु हो गयी है। एक साल हो गया है। किसी को बहुत याद करती थी। एक पत्र छोड़ कर गयी है।"
वह आदमी आगे कहता है ," लोगों का लगता है कि वह कभी-कभी यहाँ रात में आती है।" अनिरुद्ध को यह सुनकर आश्चर्य होता है। साथ ही उसे उसकी बात सच लगती है क्योंकि जब भी वह प्रेम पत्र लिखता है एक अदृश्य शक्ति उसके पत्र को पूरा कर देती है। 
वह उस स्थान पर जाता है, जहाँ वह पचास साल पहले खड़े होकर क्षितिजों को देखता था। शाम के धुधलके में आकाश के नक्षत्रों में दृष्टि गड़ाता, ब्रह्मांड के बारे में कल्पनाएं करता था।और तभी अदिति नीचे दिख जाती और वह उसके हावभावों में उलझने लगता। उसे याद आता है जब अदिति ने उससे पूछा था कि "पत्र कैसे लिखते हैं?" और उसने पूछा था," किसे लिखना है?"  वह बोली ऐसे ही भगवान को। फिर बोली थी भविष्य में कभी जरूरत पड़ सकती है।  उसने कहा था,पत्र शून्य से आरम्भ होता है और शून्य पर खत्म होता है। पत्र के बीच में जो होता है वह हम होते हैं। बीती बातों को सोचता ,वह सीढ़ियां उतरते जाता है। उसकी आंखें डबडबाने लगती हैं। एकबार फिर पीछे देखता है, जहाँ उसके लिए अब कुछ नहीं है। वह होटल के कमरे में जाता है और अगली सुबह अपने दोस्त को पत्र लिखता है-
"सुबह हो चुकी है। सुबह की चाय पीते-पीते, व्हाट्सएप पर वरिष्ठ नागरिक समूह पर आये संदेश देखता हूँ। सबको पढ़ना संभव नहीं है। रेडियो पर धार्मिक संदेश, आरती आदि चल रही है। कृष्ण ,अर्जुन से कह रहे हैं," सुन ले मुझे, फिर तेरे मन में जो आये वैसा ही करना।"  अर्जुन ने फिर क्या किया सब जानते हैं। कृष्ण भगवान ने सुख-दुख, लाभ-हानि को एक ही समतल पर रखा है। कहा जाता है  दस साल की उम्र में वे राधा से बिछुड़ गये थे, अपनी बासुरी राधा को देकर।उसके बाद उन्होंने कभी बासुरी नहीं बजायी। टेलीविजन खोलता हूँ तो समाचार है केरल, उत्तरप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल आदि जगह बाढ़ है और आस्ट्रेलिया(न्यू साउथ वेल्स) में सूखे की मार है, एक कंगारू का कंकाल दिखा रहे हैं। इतना सुन-देख कर मैं घर से बाहर निकल चुका हूँ। आकाश में शान्ति लग रही है, धरती पर तेज परिवहन है,प्रदूषण के साथ। मैं बैंक में जाता हूँ। बकरीद की छुट्टी कब है ,इसकी चर्चा है।अनिश्चितता का सिद्धांत यहां भी लागू है। विज्ञान में यह सिद्धांत कहता है, किसी कण की स्थिति और वेग,एक समय पर एक साथ सही-सही ज्ञात नहीं कर सकते हैं। जीवन में एक वेग है, एक स्थिति है और समय भी है। अनिश्चितता बहुत है। दूसरे बैंक में भी काम है, पर वहाँ नहीं जाता हूँ क्योंकि कल के लिए भी काम रखना है। चिकित्सालय के सामने आते ही मन होता है," चलो, वजन नाप लेता हूँ।" वजन नापता हूँ। वजन स्थिर है। फिर सोचता हूँ, रक्तचाप नपवा लेता हूँ। रक्तचाप थोड़ा बढ़ा हुआ है। बाहर निकलता हूँ तो देखा बाहर दो बहुत मोटे पुरुष और महिला बैठे हैं। शायद, डाक्टर को दिखाकर आराम कर रहे होंगे। उनका मोटापा मेरा ध्यान खींचता है। मुझे इन्हें देख डलास,यूएसए की याद आ जाती है। जब माँल के बाहर बेडौल, मोटे काले- गोरे लोगों को देखकर मन सहम जाता था। कभी-कभी मन बेतुका हो जाता है। फिर मन बचपन की कविता सोचता है," अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप---।"  मेरे पास खाली समय बहुत है। पेड़ों के नीचे एक चक्कर लगा लेता हूँ। फिर एक बेंच पर बैठकर, मोबाइल देखता हूँ, उसमें एक संदेश है, ईस्टोनिया की जस्टिन का, सभी विशेषणों के साथ।अच्छी दोस्ती और प्यार के विनिमय के लिए। फेसबुक की दुनिया में शब्द बहुत तेजी से चलते हैं। संदेश पढ़कर अच्छा लगता है और चेहरे पर मुस्कान भी फैलती है। उसने मेरा पुराना फोटो देखा होगा, चमकवाला। लेकिन तभी एक पुराना साथी वहाँ आ जाता है। हम दोनों चाय पीते हैं। वह कहता है," समय नहीं कटता है। सोच रहा हूँ,  लाइब्रेरी का सदस्य बन जाऊं।"  मैंने कहा," अच्छा है, फिर भू-विज्ञान से नाता जुड़ा रहेगा।" आसमान में बादल घिर आये हैं। जीवन की खोज क्षण-क्षण जारी है। लगता है, सुख-दुख और लाभ-हानि एक ही धरातल पर आ जाते हैं।"
पत्र को प्रेषित कर वह फिर अदिति के बारे में सोचने लगता है।