अभी हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति ने डेमोक्रेटिक पार्टी के एक कार्यक्रम में अमरीकी अर्थव्यवस्था की तारीफ़ करते हुए भारत समेत कुछ अन्य देशों को ज़ेनोफोबिक की संज्ञा देकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया| ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोष के अनुसार ज़ेनोफोबिक का अर्थ है किसी भी विदेशी के प्रति नापसंदगी, परहेज़ या डर| विदेशी व्यक्ति, विदेशी भाषा, विदेशी संस्कृति इत्यादि के प्रति स्वीकार्यता का अभाव|
हालाँकि विवाद होता देख, वाइट हाउस की तरफ से एक रक्षात्मक बयान भी आया जिसमे कहा गया कि राष्ट्रपति के उक्त कथन का अर्थ ये है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था के मज़बूत होने का बड़ा कारण है कि वे अप्रवासियों का स्वागत करते हैं, वहीँ भारत, चीन, जापान जैसे देश अप्रवासियों के प्रति पूर्वाग्रह रखने के कारण उतनी तरक्की नहीं कर पाए|
इस बात में कोई संदेह नहीं कि अमरीका एक अप्रवासियों का देश है, दुनिया में सबसे ज्यादा अप्रवासी अमरीका में ही रहते हैं और अमरीका की उन्नति में अप्रवासियों की बहुत अहम् भूमिका है| परन्तु एक ढाई-तीन सौ साल पहले जन्मे देश के राष्ट्रपति का सहस्त्रों वर्षों की हमारी समावेशी संस्कृति को ज़ेनोफोबिक कहना हास्यास्पद ही है|
अंततः ये साबित हो गया कि पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में अमरीका का भारत के प्रति व्यवहार बदला है नज़रिया नहीं| कुछ महत्त्व हमें देने लगे क्यूंकि हम उनके लिए एक बहुत बड़ा बाज़ार हैं, एक सौ चालीस करोंड़ लोगों का बाज़ार पर मूलतः वे आज भी हमें सपेरों का देश ही समझते हैं|
अमरीकी राष्ट्रपति को अगर भारत के इतिहास का ज़रा भी ज्ञान होता तो उन्हें पता होता कि शक़, हूण, कुषाण, मुग़ल से लेकर अंग्रेज़ तक इस धरती पर कभी आक्रान्ता तो कभी व्यापारी बनकर आये और इस धरती ने सबको स्वीकार कर लिया| आज़ादी के बाद से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से शरणार्थियों का आना आज भी जारी है| रोहिंग्यायों की समस्या से अब लगभग पूरा भारत परेशान हो रहा है पर जब वो आ रहे थे हमनें उनपर तरस खाकर उन्हें आने दिया| आज आलम ये है कि पहचान करना भी मुश्किल है कि कौन रोहिंग्या है और कौन नहीं|
हालाँकि गलती हमारी ही है, हमनें हमारी संस्कृति को तुच्छ मानकर अपनी संस्कृति की उपेक्षा करके अमरीकी जीवनशैली एवं उनके ब्राण्डों का इतना अधिक अनुसरण कर लिया कि वो स्वयं को हमसे श्रेष्ठ मान बैठे|
खैर, अगर हम मान भी लें , कि अमरीकी राष्ट्रपति को भारतीय इतिहास और भारतीय संस्कृति की कोई जानकारी नहीं, फिर भी एक राष्ट्राध्यक्ष का किसी संप्रभु राष्ट्र की संस्कृति पर टिप्पणी करना सर्वथा अनुचित है|