ख्यातिप्राप्त पहलवान और ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया का पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई न कर पाना दुखद है| किन्तु जिस प्रकार वो अपने प्रतिद्वंदी से पराजित हुए वो शर्मनाक है| खेल में हार-जीत लगी रहती है किन्तु पहले बजरंग पुनिया द्वारा बिना ट्रायल दिए ओलंपिक में जाने की जिद करना फिर उनका ट्रायल में इस प्रकार रौंद दिया जाना प्रश्न तो खड़े करता ही है|
हालाँकि ये बहस दशकों से चल रही है कि विभिन्न खेलों के खिलाड़ियों का अपने खेल से ध्यान हटाकर विज्ञापन के लिए मॉडलिंग करना या कोई अन्य व्यवसाय करना उचित है या नहीं| निर्विवाद सत्य ये भी है कि खिलाड़ियों का सफलता का काल-खंड बहुत छोटा होता है, उन्हें उसी समय में अपना भविष्य भी सुरक्षित करना होता है| परन्तु यहाँ ये भी समझना होगा कि अपने देश के लिए खेलना जीविकोपार्जन का साधन नहीं है, वरन कर्तव्य है देश के प्रति, उम्मीद है देशवासियों की और गर्व है अपने आप पर|
खिलाड़ियों को ये समझना होगा कि उन्हें जो प्रेम, पहचान और सम्मान मिल रहा है वो उनके खेल की वजह से है इसलिए कभी भी अपने खेल से समझौता न करें|