*बुढ़ा घर*
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मकड़ी के जाले भर,
झिंगुरो की किर्राहट,
कालिख पूती दीवार।
करता बंजर बन इतजार......
ठुंठ तुलसी का बीरवा,
चुल्हे की बूझी राख,
प्यासा सूखा मटका,
करता बंजर बन इंतजार .....
झुलती चरमट खटिया,
डीबरी तेल का दिया,
टूटी -फूटी छपरिया,
करता बंजर बन इंतजार .....
सबको खुशियाँ दी,
नववधुओ का स्वागत किया,
रूनझून,किलकारियां,
सूनने के लिए,
करता बंजर बन इंतजार .....
सावन आया,भादो आया,
पर सुनी रही दलान,
खत्म हो गई आस उसकी,
जर्जर हो गई मचान,
उंची अटार अब उल्लू बैठ,
करता बंजर बन इंतजार ।
आरती सिंह