ललक हो तो फलक
अगर तुम में सीखने की ललक नहीं है,
तो मंज़िल-ए-फ़लक नहीं है।
ख़्वाब तो पलकों पे सजा लेते हो,
पर राह में चलने की धमक नहीं है।
किताबें सामने, सोच कहीं और,
हौसलों में अब वो चमक नहीं है।
बातें बड़ी, इरादे बंजर,
मेहनत में मिट्टी की महक नहीं है।
गिरने का डर जो बाँध ले पाँव,
तो उड़ने की कोई पतंग नहीं है।
जो कल के सहारे आज जिए,
उसके आज में ताज़ी उमंग नहीं है।
सीखना ही पूजा, सीखना ही धर्म,
बिना इसके जीवन अगरक नहीं है।
जो खुद को रोज़ नया न करे,
उसकी किस्मत में फलक नहीं है।
उठो, सवालों से दोस्ती करो,
राहों से अब कोई झिझक नहीं है।
जहाँ जिज्ञासा ज़िंदा रहती है,
वहीं तकदीर की हर शक्ल नहीं है।
Arymoulik