अपने ही जब तानों से ज़ख़्म देने लगे,
तो परायों से क्या उम्मीदें रखने लगे।
हर लफ़्ज़ तीर सा दिल को चीर जाता है,
अब तो जीने से ज़्यादा मरने को दिल चाहता है।
जिनके लिए लड़ते रहे हर हालात से,
वही हँसते हैं आज मेरी तन्हाई और जज़्बात पे।
कभी चाहा था मुस्कान दूँ उन्हें हर घड़ी,
पर अब उन्हीं के तानों ने रूह तक तोड़ दी।
काश समझ पाते कि उनके अल्फ़ाज़ क्या कर रहे हैं,
एक ज़िंदा इंसान को भीतर ही भीतर मार रहे हैं....