दीप को बुझा,
बात-बात में ‘सॉरी’ बोलती हो।
मुझे तुम खोने से भी डरती हो?
कुछ बोल दूँ तो
तुम चेहरे का रंग बदलती हो।
मुझे तुम्हारे नयन में
छल दिखते हैं,
क्योंकि तुम
हर प्रश्न का उत्तर बदलकर देती हो।
तुम अपनी पथ-डगर पग-पग क्यों बदलती हो?
तुम फूलों को क्यों रुलाती हो?
मैं चाहता हूँ कि
तुम मेरे बाग की शहजादी बनो,
मगर मेरे ही बाग में
मुझे तुम क्यों बर्बाद करती हो?
मुझसे मिलने के लिए,
मेरे बागों के तरुओं से
मेरी खबर लेती हो,
पर सामने आओ तो
चेहरा क्यों छुपा लेती हो?