झूठे चेहरों की मोहब्बत
आईनों की बस्ती में, सच का ठिकाना कहाँ,
हर चेहरा मुस्कुराए — मगर दर्द छिपाना कहाँ।
बातों में मिठास, दिल में खंजर की धार,
मोहब्बत अब सौदा है, रिश्तों का व्यापार।
जो कहे “जान” वो जाने भी नहीं,
जो दे “वादा” वो निभाने भी नहीं।
अदा से दिल जीतते हैं ये झूठे चेहरे,
फिर वही चेहरे दिल तोड़ जाते सवेरे।
पलकों पर ख्वाब, ज़ुबां पर कसम,
अंदर सन्नाटा, बाहर है सनम।
अब मोहब्बत में सच्चाई ढूंढना वैसा है,
जैसे रेत में पानी का चेहरा देखना वैसा है।
वो दौर गया जब नज़रें बोलती थीं,
अब इमोज़ी मोहब्बत खोलती हैं।
सच कहूँ तो अब दिल नहीं डरता,
झूठे चेहरे ही अब हकीकत लगते हैं मरता।
फिर भी कोई दीवाना है, सच्चाई की आस में,
जो मोहब्बत ढूंढता है, नक़ाबों की प्यास में।
शायद वही दीवानगी अब आख़िरी सबक है.
झूठे चेहरों में भी तलाशे कोई सच्चा फलक है।
@आर्यमौलिक