मोहब्बत खामोश नहीं होती
वह कुछ नहीं कहती-
पर उसकी आँखों का समुंदर बोलता है,
हर लहर में छिपा है एक नाम,
जो उसने कभी पुकारा नहीं...
उसकी चुप्पी में है एक गूंज,
जो दिल की दीवारों से टकरा कर लौटती है,
जैसे पुरानी हवेली में
अब भी किसी की परछाईं गुजरती हो।
खामोश मोहब्बत
वह नहीं जो आवाज़ मांगे,
वह तो गंध है मिट्टी में घुली,
गीत है जो बिना सुर के गाया गया।
कभी वह आह बनती है,
कभी किसी हँसी में छिप जाती है,
कभी किसी अधूरे ख़त के कोने में
साँस लेकर थम जाती है।
कहते हैं प्रेम बोलता नहीं-
पर सच यह है,
मोहब्बत खामोश नहीं होती.
आर्यमौलिक