हया और अदा — एक नज़्म ✧
हया से पलकें झुका ली उसने,
जैसे चाँद बादल में खो जाए,
मगर नूर फिर भी टपकता रहा,
हर कोने में दिल के सरकता रहा।
अदा से फिर मुस्कुरा दी उसने,
मानो सदीयों की ख़ामोशी बोल पड़ी,
वो मुस्कान — एक तीर थी नर्म मख़मली,
जो सीने से दिल तक उतर पड़ी।
कितना आसान है उनके लिए,
यूँ नज़रों से क़यामत बरपा देना,
हया में परदा रखना,
अदा से पर्दा हटा देना।
लोग कहते हैं — बिजली गिरा दी हसीना ने!
पर असल में तो,
उसने किसी बुझी रूह में चिंगारी जगा दी।
हया उनका पर्दा है,
अदा उनका इकरार,
और जो इस बीच ठहर जाए —
वही सच्चा दीदार।
🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲