Hindi Quote in Poem by Deepak Bundela Arymoulik

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**मरे हुए लोग**

वे लोग जो रोज़ सांस लेते हैं,
पर जिनमें जीवन नहीं होता।
जिनकी आँखों में कोई सपना नहीं,
चेहरे पर कोई प्रकाश नहीं—
बस एक निःशब्द अंधकार का बोझ।

वे चलते हैं, बोलते हैं, खाते हैं,
पर कुछ *महसूस* नहीं करते।
किसी की पीड़ा उन्हें नहीं छूती,
किसी की पुकार कानों तक नहीं जाती।
उनके दिलों के दरवाज़े,
लालच और स्वार्थ के ताले में बंद हैं।

वे हँसते हैं—पर मशीन की तरह,
बोलते हैं—पर मन के बिना।
उनके भीतर आत्मा नहीं,
बस एक निर्धारक प्रोग्राम चलता है—
“कैसे अपने स्वार्थ को पूरा किया जाए।”

इन जीवित लाशों के बीच
मानवता सिसकती है।
संवेदना एक पुरानी किताब बन गई है,
जिसे अब कोई पलटता नहीं।
करुणा का नाम अब मज़ाक है,
और ईमानदारी एक मूर्खता।

सड़कों पर भीड़ है, पर मनुष्यता नहीं।
हर चेहरा मुखौटे में है,
हर नज़र किसी छल की गणना कर रही है।
ये वही लोग हैं—
जो ज़िंदा होकर भी कब्रों में सोते हैं।

कभी किसी रोते बच्चे की आवाज़
इन पाषाणों से टकराकर लौट आती है,
कभी कोई वृद्ध गिड़गिड़ाता है—
पर ये बुत हिलते भी नहीं।
जिन्हें अपने सिवा किसी का होना
महसूस ही नहीं होता—
वे ही हैं *जीवित रूपी मृत लोग*।

और शायद यही सबसे बड़ा शोक है—
कि अब मृत्यु से डर नहीं लगता,
मनुष्यता की मृत्यु तो पहले ही हो चुकी है।

आर्यमौलिक

Hindi Poem by Deepak Bundela Arymoulik : 112001659
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