मैं लिख दूँ हर शब्द में, हर विचार में
दर्द की आहट, प्रेम की फुहार में।
मैं लिख दूँ दो आत्माओं की पीड़ा,
भीतर सुलगती, बाहर ठंडी सी क्रीड़ा।
मैं लिख दूँ ईर्ष्या की तीखी ज्वाला,
और लिख दूँ प्यार की निर्मल धारा।
मैं लिख दूँ अपनापन के कोमल रंग,
गलत बर्ताव के कड़वे ढंग।
मैं लिख दूँ संस्कारों की गहराई,
पीढ़ियों में बहती उनकी तरंगाई।
माँ दुर्गा की शक्ति से चलती मेरी कलम,
स्याही मेरी कभी फीकी, कभी गहन।
कभी थम जाती, कभी बह जाती,
कभी धीरे चलती, कभी तीव्र बह जाती।
और यह सब जो लिखती है, वो कोई और नहीं —
मेरी मां की शक्ति ही लिखती हैं