सुकून की तलाश में
शहर की भीड़ में, शोर में,
हर कोई उलझा है किसी दौड़ में।
कदम रुकते नहीं, साँस थमती नहीं,
दिल को चाहिए बस ठहराव कहीं।
सुकून की तलाश में निकलता हूँ रोज़,
कभी किताबों के पन्नों में, कभी खुद की सोच।
कभी समंदर की लहरों से बातें करता हूँ,
कभी चाँद की चुप्पी में अपनी थकान उतारता हूँ।
पेड़ों की छाँव में जब हवा सरसराती है,
मन की बेचैनी जैसे गीत गुनगुनाती है।
एक कप चाय, एक खुला आँगन,
यही तो है असली जन्नत का दामन।
सुकून बाज़ार में बिकता नहीं,
ये तो दिल के भीतर ही मिलता कहीं।
जहाँ लोभ न हो, जहाँ दिखावा न हो,
बस अपनापन और सच्चाई का बसेरा हो।
आख़िर समझ आया—
सुकून की तलाश बाहर नहीं,
ये तो अपने ही भीतर की रोशनी है।
जब मन का आईना साफ़ हो जाए,
तभी असली सुकून हाथ आए।
DB-arymoulik