मैं और मेरे अह्सास
शरद ऋतु
शरद ऋतु की शीतल संध्या के सुहाने मौसम में दिल छलकता हैं l
रोज आसमाँ की लालिमा को चुराना कर हवा में धड़कना हैं ll
शरद की धूप में नहा-निखर कर हो गये है दिवाने से कि l
चारो और फली फूली खिलती हरियाली के संग महकना हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"