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> कभी-कभी हम एक कहानी लिखते हैं...
और कभी-कभी एक कहानी हमें लिख जाती है।
"प्रकाश और राधिका" की ये कहानी मैंने नहीं रची —
इसे भावनाओं ने गढ़ा है,
इसे टूटे हुए वादों और अधूरी मुलाकातों ने आकार दिया है,
और इसे उस प्रेम ने जिया है जो हर जन्म में अपना रास्ता खोज लेता है।
इस कहानी को लिखते समय मेरी उंगलियां चल रही थीं,
पर कलम को कोई और थामे था —
शायद वही राधिका, जो अभी भी किसी जीवन में
अपने प्रकाश की प्रतीक्षा कर रही है।
मुझे नहीं पता ये कहानी कहाँ तक पहुंचेगी,
लेकिन मैं इतना ज़रूर जानता हूँ कि
अगर आपके दिल में कभी किसी का नाम धड़कन की तरह बसा हो,
तो ये कहानी आपके सीने में भी धड़कने लगेगी।
ये कहानी सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है —
इसे महसूस किया जाता है।
“कुछ कहानियाँ मुकम्मल होकर भी अधूरी होती हैं...
और कुछ अधूरी होकर भी अमर।”
–निर्भय शुक्ला....