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ईश्वर — रूप या तत्व ✧

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✧ प्रस्तावना ✧

मनुष्य का सबसे बड़ा भ्रम यह रहा है कि उसने ईश्वर को अपने जैसा समझा।
उसने ईश्वर को मानव रूप दिया, मूर्तियों में बाँधा, चित्रों में कैद किया और फिर उसी कल्पना को सत्य मान लिया।
परंतु सत्य रूप में नहीं है, सत्य तत्व में है।

वेद, उपनिषद, गीता, कबीर, बुद्ध — सभी ने एक स्वर से कहा कि ईश्वर निराकार है, तत्वस्वरूप है।
आधुनिक विज्ञान भी इसी सत्य की पुष्टि करता है।
भौतिकी का नियम कहता है कि ऊर्जा और पदार्थ कभी नष्ट नहीं होते, केवल रूप बदलते हैं।
यही वेदांत का उद्घोष है — रूप विनाशी है, तत्व अविनाशी।

इस ग्रंथ का उद्देश्य है —
रूप की भ्रांति से परे हटकर तत्व का दर्शन कराना।
यहाँ शास्त्र की दृष्टि भी है, विज्ञान की दृष्टि भी है,
वेदांत का बोध भी है और आत्मानुभव की सीधी झलक भी।

जो seeker (साधक) ईश्वर को सच में खोजना चाहता है,
उसे चाहिए कि वह मूर्तियों से आगे बढ़े और तत्व में ईश्वर को देखे।
क्योंकि ईश्वर मंदिर में नहीं, प्रकृति और चेतना में है।

“रूप से परे — तत्व का सत्य”

1. ईश्वर को मनुष्य-रूप में समझना ही सबसे बड़ा भ्रम है।
जब तक ईश्वर को मानव जैसा माना जाएगा, तब तक उसकी सत्यता नहीं समझी जा सकती।

2. ईश्वर तत्व में है, रूप में नहीं।
अग्नि, जल, वायु, आकाश, पृथ्वी — ये उसके प्रतीक नहीं, ये उसका सीधा प्रकट रूप हैं।

3. विज्ञान से ईश्वर को समझना सरल है।
क्योंकि विज्ञान तत्व को देखता है,
जबकि धर्म-संप्रदाय मानव रूप और कथा में उलझे रहते हैं।

4. श्रद्धा, आस्था, विश्वास केवल पड़ाव हैं।
लेकिन जो इनसे भी ऊपर उठ सके,
वही ईश्वर को तत्व-रूप में समझ सकता है।

5. धारणा और रूप में अटका हुआ धर्म, ईश्वर को ढक देता है।
तत्व की दृष्टि ही ईश्वर की सच्ची स्मृति है।

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अर्थात् —
ईश्वर को मानव रूप में मानना,
मनुष्य की स्मृति का खेल है।
लेकिन ईश्वर को तत्व-स्वरूप में देखना,
विज्ञान और सत्य की अंतिम साधना है

वेदांत दृष्टि १

ईश्वर मानव रूप नहीं, तत्व स्वरूप है।
"न तस्य प्रतिमा अस्ति" (यजुर्वेद ३२.३)

व्याख्यान:
वेदांत का पहला उद्घोष है कि ईश्वर का कोई रूप, प्रतिमा या आकृति नहीं है।
मनुष्य अपने अनुभव की सीमाओं में ईश्वर को अपने जैसा देखना चाहता है, पर यह भ्रांति है।
ईश्वर का स्वरूप रूपरहित है, और वह केवल तत्व में ही जाना जा सकता है।
रूप बदलता है, तत्व स्थिर रहता है — इसीलिए सत्य केवल तत्व है।

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बोध दृष्टि २

पंच तत्व ही ईश्वर का प्रथम प्रकट स्वरूप है।
अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश — यही ब्रह्म की चेतना के पाँच द्वार हैं।

व्याख्यान:
यदि ईश्वर को अनुभव करना है तो हमें प्रकृति के मूल में उतरना होगा।
अग्नि में उसकी ऊर्जा है, वायु में उसका जीवन है, जल में उसकी पवित्रता है,
पृथ्वी में उसका स्थायित्व है ।

शेष आगामी 📚 में

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