संघर्ष बनाम सुविधा : हमारी पीढ़ी और आज के बच्चे
कभी दो पहियों की साइकिल पर बैठकर हम सफ़र तय करते थे।
धूप, लू, बारिश, ठंड — सबका सामना करते हुए भी किताबों को सीने से लगाकर रखते थे। उस वक़्त हमारे पास न ए.सी. था, न मोबाइल, न लैपटॉप। सिर्फ़ एक चीज़ थी — संघर्ष और पढ़ने की लगन।
माँ की बीमारी हो या भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी, सब कुछ निभाकर भी पढ़ाई से मुँह न मोड़ते थे। यही वजह है कि उस दौर के बच्चे, जो सीमित साधनों में भी डटे रहे, आज अपनी मंज़िल तक पहुँचे।
आज की पीढ़ी को देखती हूँ तो सोच में पड़ जाती हूँ।
इतनी सुविधाएँ हैं — पंखा, कूलर, ए.सी., वॉशिंग मशीन, टीवी, मोबाइल, इंटरनेट, लैपटॉप… सब कुछ। बच्चों का बस एक ही काम है — पढ़ाई करना।
फिर भी ध्यान किताबों पर कम और स्क्रीन पर ज़्यादा है।
आजकल के बच्चे पूछते हैं — “आपने हमें क्या दिया?”
पर असल सवाल यह होना चाहिए कि — “हम अपनी सुविधाओं का सही इस्तेमाल क्यों नहीं कर पा रहे?”
संघर्ष की ताक़त
सच यह है कि जिन बच्चों ने कठिनाइयों के बीच पढ़ाई की, वही आगे बढ़े। जो तपे, वही निखरे। संघर्ष ने उन्हें मज़बूत बनाया।
आज भी अगर कोई बच्चा पूरी ईमानदारी से पढ़ाई करे, अपना समय सही जगह लगाए, तो वह किसी भी सुविधा से नहीं, बल्कि अपनी मेहनत से आगे निकलेगा।
सुविधा का सच
सुविधाएँ कभी बुरी नहीं होतीं, लेकिन अगर वे हमें आलसी बना दें तो वही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती हैं।
पढ़ाई, मेहनत और अनुशासन के बिना सिर्फ़ साधन किसी को सफल नहीं बना सकते।