पुरुष का अनदेखा संघर्ष
हां, वह पुरुष भी इंसान ही है…
जिसके संघर्ष अक्सर किसी की आंखों को नहीं दिखते।
परिवार की हर जरूरत, हर इच्छा पूरी करने के लिए वह दिन-रात मेहनत करता है।
कभी मजदूर बन जाता है, कभी इंजीनियर, तो कभी बड़ा अफसर बनने का सपना लेकर रात-रात जागकर पढ़ाई करता है।
जब सफल हो जाता है तो सब उसकी तारीफ करते हैं,
पर जब असफल होता है तो वही लोग सवाल करने लगते हैं—
“बच्चों का पालन-पोषण कैसे होगा?”
तभी वह चुपचाप अपने तकिये में आंसू बहाता है, मन ही मन टूट जाता है।
पुरुष का दर्द कौन समझे?
जरा उसकी मां से पूछो, जिसने उसे संघर्ष करते देखा है।
या फिर उस पत्नी से पूछो, जो अपने पति के हर बोझ को अपना मानकर उसके साथ खड़ी रही।
वही सच्ची पत्नी है, वही सच्चा परिवार कहलाता है।
लेकिन आज की दुनिया में तस्वीर बदल गई है।
कई पत्नियाँ केवल घूमने-फिरने, बर्थडे, एनिवर्सरी और शॉपिंग को ही प्रेम और अधिकार मान बैठी हैं।
अगर वह सोचें—
“मेरे पति की कमाई चाहे कितनी भी हो, अगर एक रोटी है तो हम दोनों आधी-आधी खा लेंगे”—
तो जीवन बहुत आसान हो जाए।
पर अफसोस!
पुरुष का संघर्ष आज भी दिखाई नहीं देता।
वह हर दिन सिर्फ अपने परिवार के लिए जीता है, पर उसकी पीड़ा कोई नहीं देखता।