वो मौसम गुज़र गया जो कभी सुहाना लगता था,
वो शख्स बस मेरा ही दीवाना लगता था।
जन्नत से कम न थे वो लम्हें जो साथ गुज़रे,
वो तो खुदा का कोई नायाब ख़ज़ाना लगता था।
आया था मेरी खिज़ां सी ज़िंदगी में बहार बनकर,
उसकी आमद का भी शायद कोई बहाना लगता था।
माना समंदर-ए-इश्क़ मे तैरने का ज़माना है अब मगर,
"कीर्ति" को उसकी आँखों मे अच्छा डूब जाना लगता था।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️