मैं और मेरे अह्सास
न जाने क्यों
न जाने क्यों आज कल सरकार उखड़े से नजर आते हैं l
गली से गुजरते वक्त भी अनजानों की तरह गुजर जाते हैं ll
आज लाखों दिलों पर राज कर रहे हो फिर भी दूर दूर हो l
किस सोच में यू भीड़ में भी अकेला बैठे हुए आप पाते हैं ll
"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह