❄️ “बर्फ़ के पीछे कोई था…”
कुछ कहानियाँ हमसे नहीं कहतीं कि उन्हें पढ़ो — वो बस धीरे से हमें छूती हैं, और हमेशा के लिए हमारे भीतर रह जाती हैं।
यह किताब एक ऐसी ही यात्रा है — एक अधूरी तलाश की, एक बर्फ़ में जमी हुई ख़ामोशी की, और उस ‘किसी’ की जो दिखता तो नहीं… पर हर पन्ने में महसूस होता है।
📖 “मैंने कई बार उस बर्फ़ को छुआ था… हर बार ठंड ने मुझे काटा, पर आज पहली बार उस बर्फ़ के पीछे की गर्मी महसूस हुई। वहाँ कोई था… जो अब भी मेरा इंतज़ार कर रहा था — बिना कहे, बिना बताए, बस चुपचाप…”
यह किताब सिर्फ कहानी नहीं है — यह एक एहसास है उन सभी रिश्तों का जो अधूरे रह जाते हैं, उन जज़्बातों का जो शब्दों में नहीं ढलते, और उन सवालों का जिनका जवाब हम कभी नहीं पूछते।
“बर्फ़ के पीछे कोई था” एक आइना है — और जब आप इसमें झाँकते हैं, तो आप सिर्फ किरदारों को नहीं, खुद को देखते हैं।
अगर आपने कभी किसी को खोया है, किसी को चाहा है, या किसी को बिना कहे छोड़ दिया है — तो यह किताब आपको भीतर तक छू जाएगी।
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