🌅 "मैं खुद अपनी सुबह हूं" 🌅
मुझसे मत पूछो
कि मेरी सुबह कौन लाएगा,
क्योंकि मैं खुद अपनी सुबह हूं —
अंधेरे में जलती एक लौ,
जो तूफानों से डरती नहीं,
उन्हें चीरकर चलती है।
कभी मेरी आंखों में आंसू होंगे,
तो कभी उन आंसुओं में उम्मीद चमकेगी।
कभी मेरी आवाज़ काँपेगी,
पर कभी उसी आवाज़ से
मैं दुनिया को हिला दूंगी।
जब लोग कहेंगे —
"ये तेरे बस की बात नहीं…"
तब मैं चुप रहूंगी नहीं,
बल्कि अपने काम से जवाब दूंगी —
एक-एक कोशिश से,
हर असंभव को संभव बना दूंगी।
मुझे पता है,
मेरे पास ना बड़ी डिग्रियाँ हैं,
ना कोई बड़ी पहचान,
पर मेरे पास है —
इरादा, आग, और वो वादा
जो मैंने खुद से किया है।
माँ कहती है —
"किचन सीख ले, शादी के लिए तैयार हो जा…"
पर मेरा दिल कहता है —
"पहले अपने सपनों की रसोई में
अपनी मेहनत की रोटियाँ सेंक!"
मैं सिर्फ़ किसी की बहू नहीं,
मैं किसी की प्रेरणा भी बन सकती हूँ।
मैं किसी के घर की दीवार नहीं,
मैं खुद का एक आकाश बन सकती हूँ।
मैं वो हूं —
जो बंद आंखों से भी रास्ता देख लेती है,
जो बिना सहारे भी
चट्टानों से लड़ लेती है।
मैं वो हूं जो
अपने आंसुओं से खुद को सींचती है,
और हर सुबह खुद को फिर से उगाती है।
आज अगर मेरे पास
एक कमरा, एक मोबाइल, और एक सपना है,
तो समझ लो —
मेरे पास पूरी दुनिया है।
मैं बिखरूंगी, फिर जुड़ जाऊंगी।
मैं थकूंगी, फिर मुस्कराऊंगी।
मैं रोऊंगी, फिर दौड़ूंगी।
क्योंकि मैं वो लड़की हूं —
जो अपने आँसुओं से
कहानी नहीं…
इतिहास लिखती है।