कहानी का नाम: "लास्ट बेंच वाला लड़का"
टाइटल - “लास्ट बेंच वाला लड़का” — एक अधूरी लेकिन सच्ची मोहब्बत।
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कहानी शुरू होती है…
> “वो हमेशा पहली बेंच पर बैठती थी… और मैं लास्ट पर।”
वो टॉपर थी, मैं बैकबेंचर।
वो नोट्स बनाती थी, मैं नाम के आगे डिजाइन।
वो प्रोफेसर की फेवरेट थी, मैं डिसिप्लिन की बुराई।
फिर भी मैं हर दिन कॉलेज आता था — उसे देखने के लिए।
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नाम था उसका — अनाया।
उसकी मुस्कराहट से ज़्यादा प्यारी चीज़ मैंने कभी नहीं देखी थी।
कभी बात करने की हिम्मत नहीं हुई।
बस… क्लास के कोने से चुपचाप देखना मेरी रोज़ की आदत बन गई थी।
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एक दिन…
लाइब्रेरी में वो अकेली बैठी थी। मैंने देखा — वो रो रही थी।
हिम्मत जुटाकर उसके पास गया।
> "सब ठीक है?"
वो हैरान हुई, क्योंकि हमने पहले कभी बात नहीं की थी।
उसने धीरे से कहा,
> “सब सोचते हैं मैं परफेक्ट हूं... लेकिन अंदर से बहुत थक गई हूं।”
मैंने सिर्फ इतना कहा,
> “अगर किसी दिन अपनी परफेक्ट ज़िंदगी से छुट्टी चाहिए हो, तो लास्ट बेंच आ जाना।”
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उस दिन के बाद… कुछ बदल गया।
वो कभी-कभी मेरी बेंच पर बैठने लगी।
कभी-कभी बिना कुछ कहे मुस्करा देती।
और एक दिन उसने अपनी डायरी मुझे थमा दी।
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डायरी में लिखा था:
> “तुम्हें शायद पता न हो,
लेकिन जब पहली बार तुमने मेरी ओर देखा था,
तब से मैं भी हर दिन तुम्हें देखती हूं —
फर्क बस इतना था कि तुम लास्ट बेंच से देखते थे,
और मैं मिड बेंच से छुपकर।”
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5 साल बाद — आज मैं उसकी शादी में आया हूं।
वो दुल्हन बनी बैठी है — खूबसूरत, चमकती हुई।
मैं उसे दूर से देख रहा हूं।
आज भी वही मुस्कराहट है — और मेरी आंखों में वही सुकून।
> “कभी-कभी, प्यार जताने से पहले ही मुकम्मल हो जाता है…
और फिर सिर्फ एक लास्ट बेंच की याद बनकर रह जाता है।”