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सफलता सार्वजनिक उत्सव है, जबकि असफलता व्यक्तिगत शोक - Pawan Vaishnav
मन के बहकावे में ना आ मन राह भुलाये भ्रह्म में डाले, तू इस मन का दास ना बन, इस मन को अपना दास बनाले।।
सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। रामधारी सिंह 'दिनकर'
Nowadays in Pakistan: Unknown men 💀
कहानी का नाम: "लास्ट बेंच वाला लड़का" टाइटल - “लास्ट बेंच वाला लड़का” — एक अधूरी लेकिन सच्ची मोहब्बत। --- कहानी शुरू होती है… > “वो हमेशा पहली बेंच पर बैठती थी… और मैं लास्ट पर।” वो टॉपर थी, मैं बैकबेंचर। वो नोट्स बनाती थी, मैं नाम के आगे डिजाइन। वो प्रोफेसर की फेवरेट थी, मैं डिसिप्लिन की बुराई। फिर भी मैं हर दिन कॉलेज आता था — उसे देखने के लिए। --- नाम था उसका — अनाया। उसकी मुस्कराहट से ज़्यादा प्यारी चीज़ मैंने कभी नहीं देखी थी। कभी बात करने की हिम्मत नहीं हुई। बस… क्लास के कोने से चुपचाप देखना मेरी रोज़ की आदत बन गई थी। --- एक दिन… लाइब्रेरी में वो अकेली बैठी थी। मैंने देखा — वो रो रही थी। हिम्मत जुटाकर उसके पास गया। > "सब ठीक है?" वो हैरान हुई, क्योंकि हमने पहले कभी बात नहीं की थी। उसने धीरे से कहा, > “सब सोचते हैं मैं परफेक्ट हूं... लेकिन अंदर से बहुत थक गई हूं।” मैंने सिर्फ इतना कहा, > “अगर किसी दिन अपनी परफेक्ट ज़िंदगी से छुट्टी चाहिए हो, तो लास्ट बेंच आ जाना।” --- उस दिन के बाद… कुछ बदल गया। वो कभी-कभी मेरी बेंच पर बैठने लगी। कभी-कभी बिना कुछ कहे मुस्करा देती। और एक दिन उसने अपनी डायरी मुझे थमा दी। --- डायरी में लिखा था: > “तुम्हें शायद पता न हो, लेकिन जब पहली बार तुमने मेरी ओर देखा था, तब से मैं भी हर दिन तुम्हें देखती हूं — फर्क बस इतना था कि तुम लास्ट बेंच से देखते थे, और मैं मिड बेंच से छुपकर।” --- 5 साल बाद — आज मैं उसकी शादी में आया हूं। वो दुल्हन बनी बैठी है — खूबसूरत, चमकती हुई। मैं उसे दूर से देख रहा हूं। आज भी वही मुस्कराहट है — और मेरी आंखों में वही सुकून। > “कभी-कभी, प्यार जताने से पहले ही मुकम्मल हो जाता है… और फिर सिर्फ एक लास्ट बेंच की याद बनकर रह जाता है।”
समस्याएं जीवन का हिस्सा हैं, और उनका सामना करना ही असली जीवन जीना है। - Pawan Vaishnav
"जिसे हारने का डर होता है, उसकी हार तय होती है।" - Pawan Vaishnav
कहानी - "5 मिनट की मुलाकात" "क्या कभी किसी अजनबी से 5 मिनट की मुलाकात, आपकी पूरी ज़िंदगी बदल सकती है?" स्टेशन नंबर 3, सुबह 8:10 बजे मैं ऑफिस के लिए रोज़ उसी लोकल ट्रेन से जाता था। वही लोग, वही चेहरे। पर उस दिन एक नया चेहरा दिखा — सफ़ेद सलवार सूट, माथे पर छोटी सी बिंदी और कानों में हल्के झुमके। वो चुपचाप बैठी थी और "द अल्केमिस्ट" पढ़ रही थी। मेरी नज़रें उस किताब पर थीं… और थोड़ा-बहुत उस पर भी। मैंने हिम्मत करके पूछा, > "अच्छी लग रही है किताब?" उसने मुस्कराकर देखा और कहा, > "हाँ, पर हर किसी की कहानी किताब जैसी नहीं होती..." मैं थोड़ा मुस्कराया, > "शायद असली जिंदगी में ज्यादा मज़ा है।" हम दोनों हँसे। पहली बार किसी अजनबी से 5 मिनट की बातचीत इतनी सुकून देने वाली लगी। घंटी बजी। ट्रेन आने ही वाली थी। मैंने कहा, > "कल फिर यहीं मिलेंगे?" वो मुस्कराई, लेकिन कुछ नहीं कहा। ट्रेन आई। वो चढ़ी। और मुझे बस एक कागज़ का टुकड़ा थमा गई। --- ट्रेन निकल चुकी थी। मैंने कागज़ खोला। > **"मेरी शादी अगले हफ्ते है। शुक्रिया इन 5 मिनटों के लिए। नंदिनी"** मैं कुछ पल खामोश खड़ा रहा। कभी-कभी, कुछ लोग आपकी जिंदगी में सिर्फ एक लम्हा छोड़ने आते हैं — और वो लम्हा, हमेशा के लिए रह जाता है। दोस्तों यह मेरी पहली कहानी थी आशा करता हूं आपको अच्छी लगी होगी।🙏 आपका अपना ~ पवन वैष्णव
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