पंक्तियाँ पढ़ते हो, मुस्काते हो,
हर मिसरे में खुद को पाते हो।
पर जब कहें, “साथ चलो यारो,”
तब तुम चुपचाप निकल जाते हो।
छाँव में बैठ कर छंद पीते हो,
ग़ज़लों के गुलाबों को सीते हो।
पर 'फॉलो' का बटन जब चमकता है,
तुम्हारा अंगूठा थरथराता है!
ताली तो बजती है मन ही मन,
पर स्क्रीन पर क्यों है इतना कंजूसपन?
कब तक रहोगे ‘गुप्त प्रशंसक’ बनकर,
कभी तो आओ मंच पर उतर कर!
तुम्हें भी चाहिए हर रोज़ नया स्वाद,
पर 'फॉलो' से क्यों है इतनी नाराज़गी की बात?
बस एक क्लिक से हो जाओ हमसफ़र,
यूँ छुपकर पढ़ना नहीं कोई हुनर!
- Rohan Beniwal