की क़भी क़भी हिमत हारने का भी मन करता हे
बस युही मन को समजाके मारनेका मन करता हे
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सारी जिद छोड़ के जी चाहता हे बस
जो भी हो रहा हो स्वीकारने का मन करता हे
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चलो छोडो तुम जीत गए कहके बिना बहेसके
बात से मुकरने का मन करता हे
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बिन पलक जपकाये खुली आँख में बीती
यादें निहारने का मन करता हे