मैं तुमसे प्रेम करती हूं!
मेरे इस शब्द में नहीं समाता मेरा प्रेम!
मेरे इस प्रेम में मैं तुमसे कुछ नहीं चाहती सिवाय तुम्हारे प्रेम और स्नेह के !
तुमसे तुम्हारा ध्यान, थोड़ी सी फिक्र और थोड़ी सी अपनी भावनाओं को कदर चाहती हूं..!
जानती हूं पुरुष सब कुछ समझ सकता है लेकिन वो कहीं ना कहीं स्त्री के भीतर छुपे उसके बाल मन को नहीं समझ पाता है, उसका पौरुष शायद उसको समझने की अनुमति नहीं देता..! लेकिन तुम प्रेम में जरा सी स्त्री बन के देखो,फिर तुम पहचान पाओगे उस डर को, जो खो देने के भय से कितना क्लांत हो के अधीर हो उठता है..!
छोटी छोटी खुशियों को जीने वाली स्त्रियां इस अकारण भय से कितनी सहम जाती हैं !
बहुत दूर हैं हम..पांव के नीचे कोई ठोस धरातल नहीं है न, सिवाय विश्वास और प्रेम के.! इस विश्वास और प्रेम के सहारे तुम संग लम्बा सफर तय करना चाहती हूं....बस तुम अपने बढ़े हुए हाथ को कभी पीछे मत खींचना