पूरा साल बीतने के बाद भी कुछ तारीखें बाकी हैं,
दिल में यूँ मरम्मत के बाद भी कुछ दरारें बाकी हैं।
जाने कैसे पल भर में गुज़र जाते हैं ये अच्छे पल,
बुरे पल गुजरने के बाद भी कुछ भुलाने बाकी हैं।
लफ़्ज़ हो जाते खामोश मगर बोलती है ये तारीखें,
दरम्यां दूरियों के बाद भी कुछ अफसाने बाकी हैं।
टूटने के बावजूद भी आदत हैं सब समेट लेने की,
ज़ख्म सँवारने के बाद भी कुछ सिलवटें बाकी हैं।
हँसकर दर्द झेलने से कुछ होता ना हासिल
सबकुछ लुटाने के बाद भी कुछ चाहते बाकी हैं।