"प्रेम के बग़ैर
हर कोई अधूरा है..
प्रेम के बिना
न तो
पुरुष सम्पूर्ण है
औऱ
न ही
औरत सम्पूर्ण है..
समाज
शादी और
विवाह में
प्रेम खोजता है..
दो
शरीरों के मिलन मे
प्रेम खोजता है..
जबकि
समाज की
इन परम्पराओं मे
कहीं
प्रेम नहीं मिलता
और
प्रेम नहीं दिखता..
इसीलिये
अब
ऐसा प्रेम
कहीं नहीं टिकता..
क्यूंकि
प्रेम
कोई परम्परा नहीं है..
प्रेम तो
विशुद्ध समर्पण है
जिसमें
तेरा
तुझी को सब अर्पण है..
प्रेम
शरीर की तृप्ति नहीं
बल्कि
प्रेम
रुह की तड़प है
ये वो
गहरी प्यास है..
जो
दो रुहों में धधकती आग है..
इसीलिये तो
बिना प्रेम के
हर कोई अधूरा है
हर कोई अधूरा है.!"