पापा होते तो ,
प्यारी कहानी होती।
पापा होते तो,
खुशनुमा ज़िंदगानी होती।
पापा होते तो,
दुख नहीं आने देते।
पापा होते तो,
मुझे कहीं जाने नहीं देते।
पापा की हर बात,
जब याद आती है....
तब तब आँखें मेरी,
भर आती है।
वो बातों को घुमा कर ,
मुझे समझाना...
पल पल में बातें बताकर,
मुझे हँसाना...
वो लेम्प के उजाले में परछाई बनाना...
मेरे खेलों में मेरा साथ निभाना....
कंधे पर बिठा कर मुझे नचाना ...
अपनी गोदी में मुझे सुलाना....
क्या क्या याद करूँ ?
क्या क्या भूल जाऊँ ?
समझ नहीं आता...
कैसे उन पलों को लाऊँ?
काश आप वापस आ पाते....
काश मुझे गले लगा पाते....
नहीं जाने देती आपको...
रोक लेती अपने लिए।
खुदगर्ज़ हूँ, पर बेटी हूँ,
आप नहीं जानते,
अब कितनी अकेली हूँ ।।
- अल्फाज़-ए-ज़िन्दगी