नई थी,
वो मंदिर की देवदासी,
देवताओं की पत्नी !
नाच रही थी,
गोल गोल घूमती हुई घूमती हुई पृथ्वी पर बनाती जा रही थी
सिंदूर का गोला खींच रही थी
अपने इर्द-गिर्द लक्ष्मण रेखा
ठाकुर की,
लाला की,
महंत की,
जाने कितनी निगाहें उसका भूगोल तराश रही थी
सिंदूर से पृथ्वी की मांग सजाती भगवान के नाम की गई इस स्त्री का कोई भगवान न था...
- pooja