महिला के प्रेम का मनोविज्ञान
जो महिला आक्रामक होती है, वह आकर्षक नहीं होती। अगर कोई महिला तुम्हारे पीछे पड़ जाए और प्रेम का निवेदन करने लगे, तो तुम घबरा जाओगे और भागने की सोचोगे। क्योंकि वह महिला पुरुष जैसा व्यवहार कर रही होती है, उसमें स्त्रैणता की कमी होती है। महिला का सौंदर्य और उसकी आकर्षकता उसके स्त्रैण स्वभाव में ही होती है।
महिला प्रतीक्षा करती है, वह आक्रमण नहीं करती। वह अपने तरीके से तुम्हें बुलाती है, पर ज़ोर से चिल्लाकर नहीं। उसकी बुलाहट में मौन होता है। वह अपने सूक्ष्म तरीकों से तुम्हें अपने जाल में फंसा लेती है, लेकिन तुम्हें इसका आभास भी नहीं होता। उसकी जंजीरें अदृश्य होती हैं, बहुत ही नाजुक धागों से बंधी होती हैं, जिनसे वह तुम्हें चारों ओर से बांध लेती है, पर उसका बंधन कभी दिखाई नहीं देता।
महिला अपने आपको पुरुष के आगे विनम्रता से प्रस्तुत करती है, और लोग अक्सर इसे गलत समझते हैं। यह सोचा जाता है कि पुरुषों ने महिलाओं को दासी बना लिया है, लेकिन ऐसा नहीं है। महिला दासी बनने की कला जानती है। उसकी यह कला बहुत महत्वपूर्ण होती है। और यह वही कला है जिसका रहस्य लाओत्से उजागर कर रहे हैं। कोई पुरुष किसी महिला को दासी नहीं बना सकता, वह खुद अपनी इच्छा से इस भूमिका को निभाती है।
दुनिया के किसी भी कोने में, जब कोई महिला किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है, तो वह अपने आप को उसके सामने विनम्रता से प्रस्तुत करती है। यह उसकी गहरी समझ और मालकियत की कला है। महिला जानती है कि विनम्रता में ही उसकी असली शक्ति छिपी होती है।
महिला अपने आप को निचले स्थान पर रखती है, चरणों में झुकती है। लेकिन यह उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी ताकत होती है। जब कोई महिला अपने आप को तुम्हारे चरणों में रख देती है, तभी वह तुम्हारे विचारों पर अधिकार कर लेती है। वह तुम्हारी छाया बनकर तुम्हें नियंत्रित करती है, और तुम्हें इसका एहसास भी नहीं होता।
महिला सीधा यह नहीं कहती कि यह करो, लेकिन वह जो चाहती है, वह करा लेती है। वह कभी ज़िद नहीं करती, लेकिन उसकी इच्छा पूरी हो जाती है।
लाओत्से यह कहते हैं कि महिला की शक्ति अद्वितीय होती है। और उसकी शक्ति क्या है? उसकी शक्ति यह है कि वह अपनी विनम्रता और छाया जैसी उपस्थिति से तुम्हें अपनी ओर खींचती है। सबसे शक्तिशाली पुरुष भी प्रेम में पड़कर अपने आप को उसकी मर्जी के सामने कमजोर महसूस करने लगते हैं, और अनजाने में ही उसकी इच्छाओं के अनुसार चलने लगते हैं।
स्त्री का यह रूप उसकी सहजता और प्रेम की ताकत का प्रतीक है, जो बिना किसी संघर्ष के सबसे कठिन दिलों को भी जीत लेती है।
साभार ओशो रजनीश