आखिरी खत
बचपन से मेरा सपना था,
बड़ा होकर मैं बनूं डॉक्टर ।
मदद करूंगा गरीबों की,
ईलाज मुफ्त में उनका कर ।
अपने सपने को पूरा करने,
मेहनत मैंने जी तोड़ की ।
हर एग्जाम में अच्छा रहा,
और दसवीं भी टॉप की ।
फिर पापा ने बोला मुझसे,
बेटा कोटा जाकर पढ़ ।
कोचिंग मिलेगी अच्छी वहां पर,
बन जाएगा तेरा कल ।
बात उनकी मान कर,
मैं बैग ले अपना चल पड़ा ।
सपने अपने पूरे करने,
मैं था एक अंजान शहर में खड़ा।
गहरी सांस ली मैंने,
आगे था बढ़ चला ।
लाखों की इस भीड़ में,
मैं भी शामिल हो गया ।
यहां पर आकर जाना मैंने,
था मैं मेंढक कुएं का ।
पड़े हुए हैं कई धुरंधर,
मुझसे भी बड़े यहां ।
पर खुद को हिम्मत दे कर मैं,
मंजिल की ओर बढ़ चला ।
कमियां अपनी ढूंढ कर,
उनको सुधारने में लग गया ।
बीतते हुए वक्त के साथ,
निराशा मेरी थी बढ़ रही ।
लेकिन अपनी हिम्मत मैं,
अब तक था हारा नहीं ।
दो साल हो गए थे मुझे,
बारहवीं पास किए हुए ।
इस बार मेहनत जी तोड़ की,
अपने लक्ष्य को पाने के लिए ।
किस्मत ने था साथ दिया,
इस बार मेरा सिलेक्शन हुआ ।
लेकिन अचानक ही वो पलट गई,
क्योंकि पेपर था लीक हो गया ।
मेरी सारी मेहनत अब,
बेकार होती दिखी मुझे ।
माना बहुतों ने गलत किया लेकिन,
उसमें किया क्या था मैंने ।
मैंने तो मेहनत करके,
अपनी सीट हासिल की थी ।
अब लीक के नाम पर,
मेरी सीट चली गई ।
मेरे पापा ने खेत था बेचा,
ताकि मुझे पढ़ा सकें ।
दिन रात मेहनत करते रहें,
ताकि मेरी खातिर कमा सकें ।
4 साल तक ये सब चला,
और फिर मंजिल भी मिली ।
लेकिन वो हाथ में आकर,
फिर से हाथ से चली गई ।
अब कैसे कहूं मैं पापा से कि,
फिर से मेहनत करना होगा ।
कुछ नहीं कर सका मैं आपके लिए,
क्योंकि अब ये सब फिर मुझसे नहीं होगा ।
इस बात की क्या गारंटी है कि,
दुबारा कुछ ऐसा नहीं होगा ।
और फिर जो हुआ ऐसा तो,
मेरे और पापा के सपनों का क्या होगा ।
इसलिए अब सब कुछ छोड़,
मैं इस दुनिया से जा रहा हूं ।
बहुत दुख के साथ ये पत्र,
मैं अपने पापा को लिख रहा हूं ।
~देव श्रीवास्तव " दिव्यम " ✍️