जिंदगी अब मुझे मौत से भी बद्दतर लगती है
अगर है तू खुदा तो वापस ले, ले मेरी जिन्दगी
जो तूने मुझे इनाम में दिया था .......
थक चुकी हूं मैं भी खुद के सवालों और
आंखों में आए बेवजह के सुनामी से
अब बस सुकून के साथ गहरी नींदों में खोना चाहती हूं
मिट्टी से बने घर में मैं अकेले ही रहना चाहती हूं......
हार जाती हूं मैं खुद अपनों के आगे
अब हिम्मत जुटा पलकें उठाने से कतराती हूं
देख कर अपनों के सजी खुशीयों से महफ़िल
खुद को गलत ठहरा बिखर जाती हूं
अब बस और नहीं जिंदगी को मौत से हारना चाहती हूं.......
Manshi K