ईश्वर ने जब सृष्टि को रचा
किसी भी चीज़ को
रंग से ख़ाली न रखा
छोड़ दिया बस पानी
बेरंग
बेस्वाद ।
इस ज़्यादती पर
बहुत रोया पानी ।
पानी घुल रहा था अपनी उदासियों में
और उदासियां घुल रही थीं
सृष्टि में ।
कहां पता था पानी को
वो हर रंग में घुल जाएगा
हर तिश्नगी बुझाएगा ।
कि अकल्पित रहेगा
जीवन उसके बिना ।
सृष्टि बननी थी, बनी
मैं बनी
तुम बने
फिर हम मिले ...
मुझे तुम भी
पानी जैसे ही लगे ।।
~गुंजन