गलती करना मनुष्य की प्रकृति है,
गलती मानना उसकी संस्कृति है
और
उस गलती को सुधारना प्रगति है ।
इसके विपरीत
गलती दोहराना जिसकी आदत में शुमार है,
गलती करके भी गलती न मानना अहंकार है,
‘मैं ही सही हूँ’ जो कहे उसका जीवन अंधकार है ।
- उषा जरवाल

Hindi Thought by उषा जरवाल : 111948551
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