प्रिय ज़िंदगी !
और कितना दौड़ाओगी ? दौड़ते - दौड़ते सब कुछ तो पीछे छूट गया है । अब बस तुम्हें ही पीछे छोड़ना बाकी रह गया है । तुम नादान तो ये जानती ही नहीं हो कि ठोकरें दे - देकर तुम ही मुझे सँभलना सिखा रही हो ।
देखना दिलचस्प होगा कि इस ‘दौड़’ में तुम हार मानती हो या मैं ?
- उषा जरवाल

Hindi Quotes by उषा जरवाल : 111948417
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