मैं और मेरे अह्सास
सुहाना नशीला मौसम दिल को बहका रहा हैं l
रंगबेरंगी फ़ूलोंका गुलदस्ता मन बहला रहा हैं ll
लाखों आरजूएँ पल रहीं हैं सदियों से आज l
जिगर में तमन्नाओं का चमन महका रहा हैं ll
मुख्तसर सी बात है हमदर्द के प्यारे हाथों से l
जरा सा छूने लेने से अंग अंग दहका रहा हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह