“ हाय ये मजबूरी
ये मौसम और ये दूरी
प्रेम का ऐसा बंधन है
प्रेम का ऐसा बंधन है
जो बंध के फिर ना टूटे
अरे नौकरी का है क्या
भरोसा आज मिले
कल छूटे
अम्बर पे है रचा स्वयम्वर
फिर भी तू घबराये ?
तेरी दो टकियाँ दी नौकरी
वे मेरा लाखों का सावन जाये”
❤️
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- Umakant