ये कविता उन दिनो के यादों को दर्शाता है जब हमारी माँ की उम्र में बहुत कम उम्र में शादीयां हो जाती थी ,तब उनपर क्या बितती थी उसको अपनी कलम से दर्शाने का छोटा सा प्रयाश है ।
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माँ
ज़हन में ऐसा जादू है,
मुख मे अदभुत् वाणी है।
कोई तो पढ़ने वाला हो,
माँ के पिछे कई कहानी है।
गैरो के मुख़ से किस्सा सुना,
उनके जीवन का कुछ हिस्सा सुना
भर आई मेरी आँखे ये,
इतने दुख कैसे बांटे वे।।
अल्हड़ उम्र मे ब्याही थी,
तब कहां कलम और स्याही थी।
वो तो कुछ पढ़ ना सकी,
अपने जीवन गढ़ ना सकी।।
उनके पिता ने महाकल्याण किया,
उनका बाली उम्र मे कन्यादान किया।
माता-पिता से रिश्ता तोड़ चली,
सास-ससुर से नाता जोड़ चली।।
हर पथ-डगर निहारे वे,
पिता को अति दुत्कारे वे।
हाय-हाय तूने ये क्या किया,
बाली उम्र मे ब्याह किया।।
तब ब्याह का मतलब भी ना जाने वे,
जिम्मेदारी को कहां से माने वे।
हाय कैसी विपदा ये भारी थी,
कली के उम्र मे नारी थी।।
गौरव सिंह