......जीवन में अवहेलना के प्रसंग जब आते है।
हमारा अंतर्मन व्यथित हो उठता है।
हमारे अंदर समाहित जितनी भी ऊर्जा होती है वह खो जाती है।
उचित अनुचित में भेद करने को हम असमर्थ हो जातेहै।
और अपने कर्तव्य को करने के बजाय शोक तथा व्यथा में खुद को जकड़ लेते है ,
तब चाहिए हमे श्री सखा जैसा उपदेशक ।
जो बता सके हमारे असीमित ऊर्जा को ।
जो दिखाए मार्ग।
हर दम।
विराट रूप दर्शन।