कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
शाम तन्हाई की है आएगी मंज़िल कैसे
जो मुझे राह दिखा दे वही तारा न रहा
ऐ नज़ारो न हंसो मिल न सकूंगा तुम से
तुम मेरे हो न सके मैं भी तुम्हारा न रहा
क्या बताऊं मैं कहां यूंही चला जाता हूं
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा।
गायक किशोर कुमार
रचना मजरुह सुलतानपुरी