पिता दिवस
पिता हि धर्म पिता हि कर्म। पिता हि परमं तप। पितरि प्रीतिमा पन्ने सर्वा प्रियनति देवता। पितासि लोकस्य चराचरस्य।
पिता ही आधार है घर परिवार का।
पिता है प्रकाश स्तंभ संतानों का।
पिता से ही मिलती है पहचान है समाज में।
पिता सम कोई नहीं दूजा संसार में।
हे पिता हे पिता मेरे जीवन के सर्वस्व तुम्हें
शत शत प्रणाम है। तेरे चरणों में पाए हमने
सुख धाम है। पिता की सेवा में पाए हमने
विद्या रत्नों का भंडार। प्रथम अक्षर का ज्ञान करा दिया मां सरस्वती जी की पूजा के दिन
हाथ खल्ली कराके। मां सरस्वती जी के चरणों में सोने के निब वाले कलम * पारकर* का दिया उपहार। कापी दी आठ
नं की मां शारदे को चढ़ा कर। भर दिया लिखते हुए वर्ण माला के अक्षर। हाथ पकड़
कर लिखने का अभ्यास कराया। ना कभी भी लिखते पढ़ते हमें डांट लगाया। बड़े प्रेम से अभ्यास करते हुए वर्णमाला के सारे अक्षर सिखलाया। दिन रात हंसते हुए हमें पढ़ाया। हर दम हंसी खेलती रहती थी उनके चेहरे पर। कभी भी मलिनता नहीं देखी हमने
चेहरे पर। सुबह सबेरे जग जाते थे पिताजी।
ब्रह्म वेला उनका प्रिय समय हुआ करता था। कहने का तात्पर्य यह है कि जब गुरु द्वारे में पाठ शुरू होता। वही समय पर पिताजी श्री मद्भागवत गीता पाठ करते थे।
शिव पुराण पढ़ते , देवी भागवत पढ़ते, देवी
दुर्गा सप्तशती पाठ करते थे , देवी कवच
लिखते रहते थे। उनकी यही दिनचर्या हमने
लगभग अस्सी-नब्बे साल तक देखी लगातार। श्री मद्भागवत गीता का ट्रांसलेट
किया था उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में। छह से ज्यादा भाषाओं के जानकार थे मेरे पिताजी। करेंट में चार अखबार प्रत्येक दिन खरीदते थे। जैसे -
अमृत बाजार , इंडियन नेशन, स्टेट्समैन,
हिंदुस्तान टाईम्स, उर्दू अखबार आदि
मैं उनके साथ बैठकर सभी भाषाओं को
सीखा करती थी। बांग्ला मैंने पिताजी से
सीखे। उसके बाद उन्होंने पहला मैगजीन
किताब * बांग्ला নব কল্লোল* पढ़ना सिखाया। जिसमें आशा पूर्णा देवी की लिखी
कहानी को बंगला में पढ़कर सुनाया करते थे। उर्दू थोड़ी सीखी हर्फ तक। अरबी के साथ। दो किताबें हिंदी उर्दू टीचर लाकर
दिए सीखने को। सीख तो लिए। उन्हें पढ़ने
का शौक बहुत था। हर समय उनके हाथों
में किताबें और कापी होती थी।
सूर्य भगवान के मंत्र नेत्रोपनिषद पाठ करने कोई बताए। बोले इसे पाठी करने से
नेत्र ज्योति बढ़ती है। नेत्र विकार दूर होते हैं।
खाने पीने के शौकीन थे। स्वयं खाते और
सबको खिलाते थे। मतलब कि घर में जो
भी बच्चे या फिर कोई भी आए हुए होते
तो सबकी आवभगत अच्छे से करते थे।
फलों के शौकीन थे। आम उनका प्रिय
फल था। वैसे सारे फल पसंद करते थे।
परन्तु आम उन्हें हर दिन चाहिए था। जब।भी आम बेचने वाले आते थे तो एक दो
टोकरी आम खरीद लेते थे। बच्चों को निशुल्क पढ़ाना उन्हें अच्छा लगता था।
जितने बच्चे बैठकर पढ़ रहे होते तो सबको
समान रूप से आम वितरण करते थे। हमें
दोनों हाथ में आम देते। फिर पूछते थे और
ले लो। मतलब कि जितनी चाहो खा लो।
कोई रोक-टोक नहीं थी।
रसगुल्ले उन्हें बहुत भाते थे। बंगाल के रसगुल्ले बेचने वाले आया करते थे वर्धमान से तो प्रत्येक दिन पिताजी को रसगुल्ले दे जाते थे बेचने वाले। रसगुल्ला के साथ
मिहिदाना संदेश ये दो भी आते थे वर्धमान
से बेचने वाले, तो ये मिठाई भी खरीद कर
सबको खिलाते थे। फिर अपने खाते थे।
बच्चों को बहुत प्यार करते थे। मिश्री हर
समय वो मुख में रखते थे। बताशे और मिश्री प्रसाद हरि कीर्तन के लाकर देते थे। कुछ
भी लाते तो सबसे पहले हमारे हाथ में। पकड़ाते थे।
कैसे भुलाया जा सकता है उसका प्रेमपूर्ण व्यवहार और लाड़ प्यार मनुहार।
पिता जी के चरणों में शत-शत नमन।
पिता दिवस पर मेरी ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि ।
पिता दिवस पर सबों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां अशेष।
-Anita Sinha