इस दुनिया में पुरूषार्थ से वस्तु अथवा पदार्थ का मिलना कठिन नहीं अपितु मिल जाने के बाद उसको पचा पाना कठिन है।
भोजन ना पचने पर रोग बढ़ जाता है, ज्ञान ना पचने पर प्रदर्शन बढ़ जाता है और पैसा ना पचने पर अनाचार बढ़ जाता है। प्रशंसा ना पचने पर अहंकार बढ़ जाता है, सुख ना पचने पर पाप बढ़ जाता है और सम्मान ना पचने पर तामस बढ़ जाता है।
भोजन पचने पर वह शरीर की पुष्टी में लग जायेगा, ज्ञान पचने पर वह प्रदर्शन न कर आत्मदर्शन में लग जायेगा और पैसा पचने पर वह परोपकार जैसे धर्म कार्यों में लग जायेगा। प्रशंसा पचने पर वह आत्ममंथन अथवा आत्म मूल्यांकन में लग जायेगी, सुख पचने पर वह सदमार्ग की ओर ले जायेगा एवं सम्मान पचने पर वह भी जीवन में स्थिरता एवं सहजता को प्रदान कर देगा।