अन्याय है तो
छोटे मोटे मुकदमे का आङ क्यों
बङे दफ़ा के साथ बंदी नहीं क्यों ?
न्याय है तो
छोटे मोटे अन्याय क्यों।
शहर के लिए अङा हूँ लङा हूँ,
शहर की छवि सभी के दिल में बसे
इसके लिए हर वक्त पर एक पैर पर खङा रहा हूँ।
साहित्यक-समाजिक गतिविधियों से
समाज को बदलने का काम किया हूँ,
राजनीतिक-प्रशासनिक सहयोग से
सदैव समाज को लाभांवित करते आया हूँ।
डर नहीं डरा भी नहीं
भाव है जो जीवन में भरा है सही,
चरित्र जिसे निर्माण करने में बहुत कुछ सहा हूँ
आचार विचार से सदैव स्वंय को शुद्ध किया हूँ।
उस पर जो अंगुली उठी है
नैतिक सिद्धांतों से भरोसा उठी है,
यदि कोयलों में रहकर चमकना आसान नहीं
तो हाँ तैयार हूँ,अब चमकने के लिए।
-Anant Dhish Aman