दिनकर रथ चढ रहा है
रश्मिरथी
मन-मन में गढ रहा है ।
आओं जनता
सत्ता की सिंहासन खाली है,
दीपक बहुत यहाँ
किंतु बिन आली है।
यहाँ अंबर के
तारे-सितारे खुशी मनाते है
अर्जुन कृष्ण के
शब्द बाण से अकुलाता है।
"युद्ध की गती गई मारी है
बुद्ध की मती गई मारी है"
दिनकर रथ चढ रहा है
रश्मिरथी मन-मन में गढ रहा है,
तमस का अंधेरा छट रहा है
रश्मिरथी पग-पग मन में गढ रहा है।
-Anant Dhish Aman