मुस्कुराते होठों के करीब
गर्म चाय की चुस्कियां
तुम्हारी उंगलियों से लिपटी , और कप की कुंडिया
सुबह का नज़ारा
बस अब कुछ और नहीं
बहकते सूरज की किरणे,
चूमते तुम्हारे गालों को, कानों की बालियां
खिलखिलाती तुम्हारी नज़रे
और तुम्हारी नज़रों से लगी सुरमो की गुस्ताखियां
तुम्हारी नज़रों का नज़ारा बस अब कुछ और नहीं
-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी